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श्रेष्ठतम
तोन वैद्य थे। पहले वैद्यका प्रयत्न ऐसा होता, जिससे किसीके
रोग हो ही नहीं, दूसरा वैद्य रोग होते ही औषधि दे रोगीको स्वस्थ बना देता । तीसरा वैद्य रोगको बढ़ने देता और जब वह असाध्य-सा हो जाता तब ऐसी पुड़िया देता कि रोगी स्वस्थ हो जाता । लोग उसे बहुत बड़ा वैद्य मानने लगे । सारे नगर में उसका प्रभाव फैल गया ! एक दिन उसके प्रशंसक उसका यश गा रहे थे, तब तीसरे वैद्यने कहा, "श्रेष्ठतम वैद्य मेरा बड़ा भाई है, जो रोग होने ही नहीं देता । मेरा दूसरा भाई श्रेष्ठतर है, जो रोग होते ही रोगीको स्वस्थ कर देता है। उनका कार्य आपके सामने नहीं आता इसलिए आप लोग उसका मूल्य नहीं आँक सकते। मेरा कार्य आपके सामने आता है, इसलिए उसका मूल्य आँका जाता है ।
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भाव और अनुभाव
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