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द्वैत
जहाँ द्वैत है वहाँ परस्पर सापेक्षता आवश्यक है। एकको समझनेके लिए दूसरेको समझना ही होगा। जहाँ एक ही होता है, वहाँ समझनेकी स्थिति ही नहीं बनती। एक अनेक-सापेक्ष होता है।
और अनेक एक-सापेक्ष ।
अद्वैत
अभेद एकता नहीं समता है। समताका हो दूसरा रूप है - एकता । इसका फलित होता है कि द्वैतमें समताकी भावना ही अद्वैतको परिभाषा है।
भाव और अनुभाव
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