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अमाप्य
उस पुरुषके बारे में लिखना कठिन होता है, जो अपने अन्तर्जगत्में खिलकर संसारके सामने आये, जिसे अपनी श्रीवृद्धिमें बहिर्जगत्का प्रत्यक्ष सहयोग न मिले ।
महापुरुषके जीवन में विकल्प नहीं होता। उसमें कुशल कल कारकी तूलिका और कविकी मनोविहारी लेखनी
चरम नहीं बनती, तब दूसरा क्यों कुछ सोचे ?
भाव और अनुभाव
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