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दो वाद कहीं श्रद्धा होती है, बुद्धि नहीं होती। कहीं बुद्धि होती है, श्रद्धा नहीं होती। कहते हैं, श्रद्धा अन्धी होती है, बुद्धि लँगड़ी। श्रद्धालु चलता है और बुद्धिमान् देखता है। ये दोनों अधूरे हैं । पूर्णता इनके समन्वयसे आती है। प्रतिभाका सम्बन्ध मस्तिष्कसे है और वैराग्यका हृदयसे । विश्वास
हृदयसे जुड़ता है तभी उसका सम्बन्ध मस्तिष्कसे होता है।
भाव और अनुभाव
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