________________
पण्डित और साधक पशु और पण्डितमें जितना भेद है, उतना ही भेद पण्डित और साधकमें है। पशु अहिंसाकी भाषा नहीं जानता जब कि पण्डित जानता है। साधक वह है, जो उसकी भाषा जानने तक ही न रहे, उसको साधना करे।
आर्य ! तू ब्रह्मचारी होना चाहता है तो तू सब कुछ उसीके लिए कर । आस्वादके लिए मत सूंघ, आस्वादके लिए मत देख, आस्वादके लिए मत चख, आस्वादके लिए मत सून, और आस्वादके
लिए मत चिन्तन कर।
भाव और अनुभाव
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org