________________
उलझन
तुम दूसरोंको अपनी दृष्टि से देखते हो और अपनेको दूसरोंकी दृष्टिसे । तुम दूसरोंको अपनी गज़से नापते हो और अपनेको दूसरोंकी गज़से । यही तो वह उलझन है जिससे सारी उलझनें जन्म पाती हैं ।
कम-अधिक अन्तर्की शुद्धिका महत्त्व अपने लिए अधिक होता है, दूसरोंके लिए कम । व्यवहारको शुद्धिका महत्त्व अपने लिए कम होता है, दूसरोंके लिए अधिक।
भाव और अनुभाव
४२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org