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चीर
कल्पनाका चीर इतना पतला है कि उसमें से तुम देख सकते हो पर उसे ओढ़कर चल नहीं सकते। पुरुषार्थका चीर इतना सघन है कि उसमें से तुम देख नहीं सकते, पर उसे ओढ़कर चल सकते हो।
लघु-गुरु गुरुत्वने अन्तःकरणको छुआ कि मनुष्य लघु बन गया और लघुत्वने अन्तःकरणका स्पर्श किया कि वह गुरु बन गया ।
भाव और अनुभाव
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