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तटका बन्धन
तुम भले चाहो, ज्ञान बढ़े। यह मत चाहो, ज्ञानकी बाढ़ आये । तुम यही चाहो, ज्ञानकी धारा सम्यक्-दर्शन और सम्यक्-चरित्रके तटोंके बीच बहती रहे। यह मत चाहो, ज्ञानको धार इन दोनों तटोंको तोड़कर बहे।
गहराईमें
ऊपर क्या देख रहे हो ? यह शैवाल, यह गन्दगी और ये जीवजन्तु ! गहराई में पैठो, डुबकियां लो, फिर बतलाना सागर कैसा है ?
भाव और अनुभाव
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