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प्रगति और व्यापकता
तुम इसी दृष्टिसे क्यों देखते हो कि कोल्हूका बैल घेरेको तोड़ आगे नहीं बढ़ता, प्रगति नहीं करता । इस दृष्टिसे क्यों नहीं देखते कि वह लक्ष्यकी दूरीको कम कर रहा है, प्रगति कर रहा है । यह घेरा प्रगति में बाधक नहीं है, उसमें बाधक है लक्ष्यका अभाव ।
तुम इस दृष्टिसे क्यों देखते हो कि नदी तटोंसे बँधकर बहती है, व्यापक नहीं है । इस दृष्टिसे क्यों नहीं देखते कि वह नया जीवन लिये बह रही है, स्वच्छताको व्यापक बना रही है । ये तट व्यापकताके बाधक नहीं हैं, उसके बाधक हैं - प्राचीनताका व्यामोह और गन्दगी ।
भाव और अनुभाव
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