Book Title: Bhav aur Anubhav
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 36
________________ उदय और अस्त उनपर मधुकर मँडरा । उसे यह अच्छा नहीं एक व्यक्ति ने देखा : कमल खिले हुए हैं, रहे हैं, सूर्य की रश्मियाँ उन्हें छू रही हैं लगा । वह सूर्यके पास जा पहुँचा । "सूर्य ! तू कितना भोला है । कमल तेरी ओर नेत्रोंको लाल किये निहार रहा है और तू उसपर अपना सारा प्यार उँडेल रहा है" - सूर्यके दिल में एक चुभन पैदा करते हुए उसने कहा । अब वह् कमलके पास था । " तू सूर्य से प्यार करता है, पर नहीं जानता भोले कमल ! वह तेरी जड़ को काट रहा है जल और पंकका शोषण कर रहा है ।" उसकी इस वाणीने कमलको मर्माहत कर डाला 1 अब वह मधुकर के पास पहुँचा । "यह कमल सूर्यके लिए खिला हुआ है, तेरे लिए नहीं । मूर्ख मधुकर ! तेरी गुंजारपूर्ण आरानाका क्या अर्थ है ?" दिन अस्त होनेको था, तीनोंके मन फट गये । वे बिछुड़ गये । दुर्जनका दिल नाच उठा । — समयने उन्हें सम्मति दी । वे फिर आ मिले । उसने फिर उन्हें विलग करनेका यत्न किया पर उदयकी वेला थी, इस समय उस दुर्जनकी बात कौन माने ? ३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only भाव और अनुभाव www.jainelibrary.org

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