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साँचा प्रशंसाकी भट्टीमें गलाकर तुम व्यवितको चाहो जैसे ढाल सकते हो, पर याद रखो - अभिमानपर चोट की तो वह अकड़ जायेगा । फिर वह टूट सकता है किन्तु ढल नहीं सकता।
भाव और अनुभाव
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