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विस्तारका मर्म
विस्तार वही पा सकता है, जो पैरोंका मूल्य आँक सके । बरगद जो विस्तार पाता है, उसका मर्म यही तो है ।
दूसरे वृक्षोंके पैर शाखाओंको जन्म देते हैं, बरगदकी शाखाएँ पैरोंको जन्म देती हैं - विस्तारका मर्म यही तो है ।
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बरगद इस सत्यको पा चुका है कि शाखाओंके आधारपर पैर नहीं टिकते, किन्तु पैरके आधारपर शाखाएँ टिकती हैं ।
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भाव और अनुभाव
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