Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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व्याख्यान-१
जैन धर्म का उद्गम और विकास जैन धर्म की राष्ट्रीय भूमिका -
इस शासन साहित्य परिषद् की ओर से जब मुझे इन व्याख्यानों के लिये आमंत्रण मिला और तत्संबंधी विषय के चुनाव का भार भी मुझही पर डाला गया तब मैं कुछ असमंजस में पड़ा। आपको विदित ही होगा कि अभी कुछ वर्ष पूर्व बिहार राज्य शासन की ओर से एक विद्यापीठ की स्थापना की गई है जिसका उद्देश्य है प्राकृत जैन तत्वज्ञान तथा अहिंसा विषयक स्नातकोत्तर अध्ययन व अनुसंधान । इस विद्यापीठ के संचालक का पद मुझे प्रदान किया गया है । इस बात पर मुझ से अनेक ओर से प्रश्न किया गया है कि बिहार सरकार ने यह कार्य क्यों और कैसे किया ? उनके इस प्रश्न की पृष्ठभूमि यह है कि स्वतंत्र भारत की राष्ट्रीय नीति सर्वथा धर्म-निरपेक्ष निश्चित हो चुकी है, और तद्नुसार संविधान में सब प्रकार के धार्मिक, साम्प्रदायिक, जातीय आदि पक्षपातों का निषेध किया गया है। अतएव इस पृष्ठभूमि पर उक्त प्रश्न का उठना स्वाभाविक ही है। इस प्रश्न का सरल उत्तर मेरी ओर से यही दिया जाता है कि बिहार सरकार ने केवल इस जैन विद्यापीठ की ही स्थापना नहीं की है, किंतु उसके द्वारा संस्कृत व वैदिक संस्कृति के अध्ययन व अनुसंधान के लिये मिथिला विद्यापीठ, एवं पालि व बौद्ध तत्वज्ञान के लिये नव नालंदा महाबिहार की भी स्थापना की गई है। इस प्रकार का एक संस्थान पटना में अरबीफारसी भाषा साहित्य व संस्कृति के लिये भी स्थापित किया गया है। भारत की प्राचीन संस्कृतियों के उच्च अध्ययन, अध्यापन व अनुसंधान हेतु इन चार विद्यापीठों की स्थापना द्वारा शासन ने अपना धर्म-निरपेक्ष दृष्टिकोण स्पष्ट कर दिया है । धर्मनिरपेक्षता का यह अर्थ कदापि नहीं है कि शासन द्वारा किसी भी धर्म, तत्वज्ञान व तत्संबंधी साहित्य के अध्ययन आदि का निषेध किया जाय,
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