Book Title: Bharat Kshetrana Manvini Simandhar Jin Prati Haiyani Vat
Author(s): Amitgunashreeji
Publisher: Sundar Sahitya Seva Sadan

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समजो. पछी गमे तेटलं अंतर पण अनंतर बनी निरंतर सुखने मेळवी आपे छे. तो ए प्रभुना दर्शननी इच्छा पूर्ण थाय तेतो सहज छे एजरीते आजे ऐ देवना बिजने निहाळतां मारुं अंतर पुलकित बनी, भरतक्षेत्रमा रहया रहया ए सिमंधरस्वामि प्रति मारा अंतरनी संवेदनान गीत गावा मन तलसी रहयुं छे. हृदयांगणमां आनंद मची रहयो छ उरमा उमि उछळी रही छे. कलममां कसब होय या न होय पण आजे तो हैयामां अजंपो एकज वलोपात करी रहयुं छे, मारा नाथप्रति दष्टि केम स्थित करूं...? एने मेळ्ववानी वेदना संतापी रही छे.. वेदना ने शभावा गुण गावा ने लखवा तैयार थइ छु.. नयनो अभूधारा बहावी रहया छ सिमंधरनाविरह ताफ्ना बळे मारा ए आंसुना अभिषेकमां शब्दोनी धारा छे. जे आंसु अने शब्दो ए ज कहे छे "हे कमभागी ! किरतारनी कृपा न अवतरी तारी कायापर..." शामाटे ! मारी काया तो एना चरणो माहे झरे छे. मारु मस्तक, मारं अंतर एना दर्शनने झंखी रहयुं छे तो पण हुं कमभागी!!! अ...हा..हा...! ओह ! एम अनेकवार निःश्वास नाखतां निराश थतां श्रद्धानो दोर मजबूत बनता वेदना युक्त अंतर हळवं बने छे... For Private and Personal Use Only

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