Book Title: Bharat Kshetrana Manvini Simandhar Jin Prati Haiyani Vat
Author(s): Amitgunashreeji
Publisher: Sundar Sahitya Seva Sadan

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Page 78
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ अज्ञान तजित रहीत चरणं, परगुणो मे मत्सरम, अरति अदित चरण शरणं, नौमि श्री जिनमन्धरम. ॥४॥ गंभीर वदनं भवतु दिन दिन, देही मे प्रभु दर्शनम, भावविजयश्री ददतु मंगल, नौमी श्री जिनमन्धरम. ॥५॥ ---: श्री विश विहरमान जिन चैत्यवंदन : सोमंधर युगमंधर प्रभु, वाहु सुबाहु चार, जम्बूद्विपना विदेहमां, विचरे जगदाधार. ॥१ ॥ ॥२॥ सुजातसाहेब ने स्वयंप्रभ, ऋषभानन गुणमाल, अनंतविर्यने सुरप्रभ, दशमा देव विशाल. वज्रधर चन्द्रानन नमु, धातकोखंड मोझार, अष्ट कर्म निवारवा, वन्दु वार हजार. चन्द्रवाहु ने भुजंगप्रभु, नमी इश्वर वीरसेन, महाभद्रने देवजसा, अजितवीर्य नामेन. ॥४ ॥ आठे पुष्करार्ध मा, अष्टमी गति दातार, विजय अडनव चऊविशमि, पण विशमी कीरतार. ॥५॥ नगनायक जगदीश्वरू ऐ, जगवंध व हितकार, विहरमानने वंदता, जीव लहे भवपार. ॥६॥ For Private and Personal Use Only

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