Book Title: Bharat Kshetrana Manvini Simandhar Jin Prati Haiyani Vat
Author(s): Amitgunashreeji
Publisher: Sundar Sahitya Seva Sadan
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चार आगल अंतर रह, सोकलड़ी नीपरे दुश्च सहवं, प्रभु बिना कोण आगल कहरे. श्री युग० ॥५॥
मोटा मेल करी आपे, वहुंनी तोल करो थापे, सज्जन जश जगमे व्यापेरे. श्री युग०
॥६॥
बेहुनो एकमतो थावे, केवलनाण युगलपावे, तो सगली बात बणी आवे रे. श्री युग० ।। ७ ॥
गज लंछन गज गति गामी, विचरे विध विजयस्वामी, नयरी दिजया गुणधामी रे. श्री युग० ॥८॥
मस्त सुता राये जायो, सुदाइ नरपान कुल आयो, पंडत जिन विजय गायो रे.
श्री युग० ।।९।।
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