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W.32312
श्री ध्यानस्थ गुरुदेवेभ्यो नमः "पुष्प" "सुमलय" "सूर्य" "पद्म-मय" सद्गुरुभ्यो नमः जो सुंदर साहित्य सेवा सदन ग्रंथमौक्तिक २१
3B
भरतक्षेत्रना मानवीनी स्वामी सीमंधरजिन प्रति
हैयानी वात
हसूस
न
वय
- प्रेश्क :( (मयणाश्रीजी.श्री.सूर्यशिशु) म. सा.
२.३८२००
पू. श्री पबलताश्रीजी म. सा. ना शिष्या
श्री अमितगुणाश्रीजी (अमिरस) म.
वी. सं 2498 मूल्य : आराधना वि. सु. 2029 TITSISETKATTA
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श्री देवाधिदेव श्री सीमंधर स्वामीजी नमो नमः
श्री महाविदेह क्षेत्र मा विचरता
श्री सीमंधर स्वामीजी महातीर्थ की यात्रा करके मानवजीवन सफल करे? १-२१ इंच की श्री सीमंधर स्वामीजी परमात्मा
की प्रतिमाजी परिकार सहित । २-२१ इंच को श्री शंखेश्वर पारसनाथ प्रभु की
प्रतिमाजी परिकार सहीत । * ३-५१ इंच की श्री आदीश्वर भगवान की
प्रतिमाजी। ४-७ फुट की उंचाईवाला कलश ।
श्री सीमंधर स्वामीजी महातीर्थ ठि. हाईवे रोड, महेसाना
(उत्तर गुजरात)
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।। कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ।। ।। अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः ।।
।। गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः ।। । योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। ।। चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।।
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोधसंस्थान एवं ग्रंथालय)
पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा.
जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प
ग्रंथांक : १३६४
न
आराधना
श्री महावीर
कन्द्र की
अमृतं
तु विद्या
तु
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र
शहर शाखा
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079)23276252,23276204 फेक्स : 23276249
Websiet : www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर हॉटल हेरीटेज़ की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ (079) 26582355
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आगमोकि सब
सर्वहक्क स्वान
-
-: प्राप्ति स्थान :गीमान पांचीलालजी कोचर ४२६, मिन्ट स्ट्रीट .
मद्रास-१
।
. -: सहायक :धर्मपी सुनावको काम
मुद्रक :
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-: श्री सूर्यशिशुना प्रकाशनो :
★ मायानी जाळ
*
पलटाता रंग
★
वरंना विषमान
★ प्रेरणा अने प्रकाश
★ आनंद चंद्र माधुरी
★ जिनेन्द्र पद्मपराग
★ दोल दोधां देवने
★ जोवन धन
★ कुलदीपक
★ संसारनो व्हेण भा. १-२-३
★ वीणेला मोती
★ जीवण साधनानुं गुलाब
★ आनंद चंद्र ज्योति
★ ज्योति स्तवनावली
★ भक्ति माधुरी
★ उर अने उजास
★ स्वाध्याय सुमलय
★ पुनित जाप (आवृत्ति १-२ )
★ पर्व पद्म परिमल
पुष्प - सुमलय सौरभ
सूर्यना अजवाळां
5
.
-: चालु प्रकाशनो :
★ संसारना रंगराग
★ नारो तारो शक्ति
★ भक्तिनी मस्तो
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ज्ञान बगीचो
बगीचामा विहरतां आत्माने आनंदनी अनुभूति थाय छे. पण ते आनंद क्षणिक छे. बाह्य आनंद छे.
त्यारे साचो आत्मानंद क्या मेळवशो ? पधारो ! पधारो! पधारो!
श्री सुंदर साहित्य सेवा सदनना ज्ञान बगीचामां.
जेमां श्री सूर्यशिशु म. नी. कलजथी विकस्वर थयेला विविध साहित्यमय ज्ञान पुष्योनी सौरभ म्हेंकी रही छे.
ए सौरभने मेळवी
आखंड आनंद मेळवो.
श्री सुंदर साहित्य सेवा सदन
ह: जयसुखभाइ
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-: श्री सूर्यशिशुजीने :
जोप्रोभीनी सतत् वाणीद्वारा प्रेरणापामी, श्री सोमंधर स्वामीना जीवननी झाखी प्राप्त करी, आ पुस्तक प्रकाशन करवा भाग्यशाळी बन्या छोए.
जीओना दिलडामां श्री सीमंधर स्वामी प्रति अविहड रंग-भक्ति भर्या छे.
तेओश्री निष्करण वत्सल.. साहित्य भारती... परम उपकारीने..
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महाविदेह मंडन श्री सीमंधरस्वामी प्रभु
200403390000000000000
જ હૈ શ્રી અ ગ્રીસીમંધર સ્વામિને નમઃ શ્રી સ્વાકા:
बीज तणो जे चांदलो, तेहनी साथ अमारी रे. आय पहोंचेगी वंदना, सुत कहेजो संभारी रे.
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जन्म
समुदाय शिरोमणि
स्व. पूज्य श्री पुष्पाश्रीजी महाराज
दीक्षा
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कपडवंज
स्वर्ग
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$2829
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856850050566650355605250505605
20252525232:252525252522323232625262525282825
सौम्यवदना गुरुदेव
स्व. श्री सूर्यकान्ताश्रीजी
महाराज सा. 82522528282228252525252528252252828282528282825252528282825252525222225252S2SS2
स्व. पूज्य सुमलयाश्रीजी
महाराज सा.
5-23232323232282525232625252XMASEXSEZAMESEISEAS232
प्रशमरश महोदधि
gog OC9C98989C2C923223222322323232323232323232323252525)
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सं. २०२७ ना चातुमासमां जेओनी पुनित छायामां
अपूर्व आराधना थइ छे तेओश्री पू. पद्मलताश्रीजी म. तथा प. मथणाश्रीजी (श्री सूर्यशिश) म. पोताना परिवार साथै शोभिरया छ.
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-: दिलनी वातो :
हे प्रभु मारा मनमंदिरमां तने पधराव्या पछी मारे तारी पासे घणी दिलनी वातो करवी छे.
मारी वातो केवी छ ? कहुँ...?
वात छे अध्यात्मना सर्जन माटेनी.. एवं उत्तम सर्जन तारा विना कोण करावी शके ?
साधकनी सिद्धिनुं परम तत्व तुं ज छे.
सर्जनहारनुं प्रतिभावंत प्रतिबिंब तुं ज छे.
मारे तो तारी साथे वात करवी छ. ए वात करतां रातो पण ओछी पडशे . पण मन अधीरुं बनी ग) छ. तनना तार झणझणवा लागी गया छे. एना छेडाता सूरोमां शं छे?... मारे साचा साधक बनवं छे.
पण आपना साथ बिना शक्य केम बने ?
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साधना मारी, शक्ति तमारी दिलनी वातो मारी, दिल दई तारवानी महेनत तमारी. कविता कलम मारी, कर्मने हठाबवानी शक्ति आपवी तमारे. शब्दो मारा, समाधि आपवानी तमारे भावना मारी, दयाभाव राखवानो तमारे भक्ति मारी, यक्ति बतावबानी तमारे खुमारी देहनी मारी, खुशी तमारी.
मारी एकलतामां तारी एकता मने जोइए छ. मारा पमा तारी जरूरत छ...
हे प्रभु ? मळशोने ?
हूं तो तारी पांसे बाळक छु....
मारो वातो केवी होय ? गांडी ने घेली · पण एवी काली भाषामां व्हाल अने भक्तिना भावो ज भाँ....मानजे...
हे सिमंदर? आ छे मारा दिलनी वात...
मने बिनाशना पंथेथी वाळो विकाशना पंथे संचार...
तारा दर्शनना भावोयी मारा अंतर- निदर्शन कराव...
श्री सूर्यशिशु
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हैयाना उद्गार
हैयामा बिराजेला, दूर दूर बसेला, मानवीना अंतर अंधारना ओळाने फगाववा समर्थ, सुभाव सरीतामांथी बहेती भरतक्षेत्रना मानवीनी वंदनाने स्वीकारनारा, श्वासोश्वासमाये जेनो वस्यो छे वास एवा साक्षात प्रभु वीतराग श्री सिमंधर ना गुण गावा के लखवा एतो जीभमां सरस्वतीदेवीनो बास थइ जाय, अने एकी साथे हजार कलमो बडे लखीए, तो पण ले गाइ के लखी शकाता नथी. तो मारी वात शंकरुं?
हुं साहित्यकार छु एवो दावो करती नथी, के कोइ लेखक छ एवो दावोये करती नथी, मारामां कोइ शक्ति छ एवो दावो पण करती नथी. पण ज्यां हृदयज, ए हृदय संवेदना अनुभवी महान आत्माना जीवन प्रति दृष्टि नांखी दिव्यदर्शन थतां वरदान मांगे तो, ए सरस्वतीदेवीनी अने कलमनी प्रसादी प्रेमरूपे... बक्षीसरूपे सहज उत्तरे छे. ए निःशंक छे.. अनुभव सिद्ध छे.
मारी ऊंडी वेदना - अटल श्रद्धा, ए प्रभुना गुण-गान गावामा प्रेराइ छ. मळवा माटे मनोरथो भर्या छ, पण भगवान दूर सुदूर एने पापथी भरपूर रहेला आतमनी भावना क्याथी पूरी करे !!!
अरे ! शामाटे पूर्ण न करे !
ए प्रभुना नेत्रोमां ज एवी करुणा भरीछे के जो भक्तनी नजर प्रभुपर ठरी के ए प्रभुनी दृष्टि भक्त पर स्थित थइ ज
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समजो. पछी गमे तेटलं अंतर पण अनंतर बनी निरंतर सुखने मेळवी आपे छे. तो ए प्रभुना दर्शननी इच्छा पूर्ण थाय तेतो सहज छे
एजरीते आजे ऐ देवना बिजने निहाळतां मारुं अंतर पुलकित बनी, भरतक्षेत्रमा रहया रहया ए सिमंधरस्वामि प्रति मारा अंतरनी संवेदनान गीत गावा मन तलसी रहयुं छे. हृदयांगणमां आनंद मची रहयो छ उरमा उमि उछळी रही छे.
कलममां कसब होय या न होय पण आजे तो हैयामां अजंपो एकज वलोपात करी रहयुं छे, मारा नाथप्रति दष्टि केम स्थित करूं...? एने मेळ्ववानी वेदना संतापी रही छे.. वेदना ने शभावा गुण गावा ने लखवा तैयार थइ छु.. नयनो अभूधारा बहावी रहया छ सिमंधरनाविरह ताफ्ना बळे मारा ए आंसुना अभिषेकमां शब्दोनी धारा छे.
जे आंसु अने शब्दो ए ज कहे छे "हे कमभागी ! किरतारनी कृपा न अवतरी तारी कायापर..."
शामाटे !
मारी काया तो एना चरणो माहे झरे छे. मारु मस्तक, मारं अंतर एना दर्शनने झंखी रहयुं छे तो पण हुं कमभागी!!!
अ...हा..हा...! ओह ! एम अनेकवार निःश्वास नाखतां निराश थतां श्रद्धानो दोर मजबूत बनता वेदना युक्त अंतर हळवं बने छे...
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एक आशे. एक राशे...
दूर रहया सूर्यना किरणो पृथ्वीने आलिंगन करी उष्मा, तेज अने चेतन आपे छे तेम एन ध्यान, स्मरण अने भक्ति मने उष्मा, तेज अने चेतन आपो मने प्रभुमय करशे....मारी वेदनाने सांभळशे.
प्रेमनो प्रवाह पापीनो पलटो लावे तेम, प्रभ ! प्रेम अने प्रभ स्मरण मानवीना हृदय ने पलटावे छे.
क्यां भरत क्षेत्र ! अने भरतक्षेत्रना बदनशीबवान मानवी! क्या महाविदेहनी पुण्यवान भूमि ! क्या पुष्कलावती नगरी याने आठमी विजय ! पूण्यांशी क्षेत्र, महाविदेहनो मानवी श्री सिमंधर प्रभुने पामी महान बनी चूक्यो ?
त्यारे भरतनो मानवी झंखना करी करी झरी मथों.
वियोग वादळ हठे नहिं ने विहरता देवना दर्शन मळे नहि. छतां एकज आशा....! अरमान ....! आल्हाद के
" श्री सिमंधर जगधणी, आ भरते आवो... भरतक्षेबना मानवी, ज्ञानो विना मुंज्ञाय छे.... मननी मंझवण कोने कहे....? क्या हैया पामर पोकारे ?"
आ विचारोतुं वलोj धुमी द्युमी मंथन करी तोफानी आत्माने जागृत करे छ ने!
श्री सूर्यशिशु
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आशा फळे छ
सुप्रभाते, शांतिना संदेशमां, करुणा सभर वातावरणमां, देवना दिलमांथी दयानो स्रोत वहेतो वहेतो भक्तनी समीप आवशे....आवशे ..
एकज वात! देवाधिदेव! अंतर नहि हवे ताशमां अने मारामां आत्ममंदिरमा हे सिमंधरस्व मि! आपनं प्रतिष्ठित प्रतिबिंब पधरावायछे...ने ते कमाल करी जाय छे.
भावनानी कतारमा रहेली कृपान कोमल दर्शन जाणे साक्षात करावी जाय छे.
भावनाना वेगमां क्षणभर भूली जाय छे भरतक्षेत्रने, पोताने, अन्यने अने! अने ध्यान स्वप्नमां एवो उडो उतरी जाय छ आत्मा, के अज्ञानरूपी अंधकारने धकेली देवानं काम ए स्वप्नद्वारा क्षणमां थइ नाय छ । प्रकाश प्राप्त थाय छे. ए ज्ञानप्रकाशद्वारा चर्मचक्षु पण दिव्यचक्षु बनी उंडं आतमनं संशोधन करवा मथे छे.
आ ज छे अनुभत आनंद स्वरमणता. आनंदनी अनुभूति विमानो लुक्खु फिक्कु जीवन जीवनारो, ससारनी सपाटी उपर सरकतो ज जाय छे.
जीवन शुं छे। शामाटे जीववानु छ ? एनो विकास ? प्रारंभ ? के अंत ? आ बधू जाणे एने तत्त्वमां ज भासे छे. एने
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मनतो जीवन एटले लोलीकुंजवननो हरियाळी मस्ति प्रकृतिनी प्रमलीलानी प्यासा ? सृष्टिना सौन्दर्य, सुमधुर पान | आनंद पिपासने शमाववानुं सुख केन्द्र ! सोनल समणानुं स्वर्ग! पण ज्यां जोवनमा झंझावात ! अने झाशवाना नीरसमा वैभव विलासमां एकाद दुःखनी लपडाक पडे के तरत मानवी नरम थइ जाय छे. पामर थह जाय छे. ए पीडती पामरता मानवीने जुदी दृष्टि आ छे....ने? मानवी कर्मने मानवा मर्मने शोधवा....भेदवा तैयार थइ जाय छ
मानवीना मन अने जीवन- पण एवं छे. आकाशतलमां मनमोहक रंगो भले पूराया होय पण घडी नयनोने शांत करशे अने पुनः अजंपा.
तो तो! अधीरा थाशो मा.... परमतृप्ति, परमप्राप्ति अने स्वतत्त्वनी झंखना, खेवना अने खोज माटे तो अजपानी आहलेक जगववीज पडशे.
बलोणाना वलोपात-अंजपा पछी ज नवनीत प्राप्य बने छे.
साची झंखनामां झूरतो मानवी ज इच्छित वस्तुनी साखी मेळवी शके छे.
___सांभळ्यु छ के भरतना मानवोनो साची वेदना युक्त तलसाट मर्यो भाव होय तो सिमंधर स्वामीना दर्शन करी शके छे. शूलीए सूवा जतां शियळना प्रभावे सिंहासन बने,
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"प्राणतत्व यो प्रेममय बनी झंखना सेवाय तो सिमंधरस्वामि साक्षात् मळे."
हे सिमंधर देव ! हुँ तारा गीतो गातो गातो आव्यो छु। वेदना अने वियोगना गान गाया, एमां हैयान गीत रेडयु. मारां गीतनो रोत सांभळी कइक आत्माना तार रणझणी उठया. पण हूं अधुरो ? अलिप्त बन्यो, मारा हैयाना तार रणझणावता पण तं न आव्यो ते न ज आव्यो कारण..?
तने जे रीते ओळखवो जोइए तेरीते न ओळरव्यो. पण हे स्वामि ? हे महाविदेहि मंधरप्रभु ! आजनो मारी वेदना शमती नथी. मन शांत पडतु नथी. हवे गीतो गावा नथी. हवे तो मारे तने साक्षात् मळवू छ.
प्रभु मिलननो लगनमा...ए विचारधारामां हुँ स्थित बनतो गयो भावसारे झुलता झुलता नयनोए झोक लोधी....ने ?
त्यां तो आणे चंद्रनी ज्योत्स्नानुं शीतल अने तेजस्वी किरण सिमंधरजिनना आगमननो संदेशो लइ मारी तरफ गति करतुं जणायुं हुं झबक्यो चारे तरफ अजवाळां पथराइ गया. ए प्रकाशमां प्रभुं सिमंधरना दर्शन थयां
मारा सुना हैयामां! मारा सुसुप्त दिलमां! मारा अंधकारभर्या अंतरमां! ....प्रभनो वास थयों....आतम जागति पई प्रकाशं थयो न जोवानं जीयं....मारो जीवडो नर्तन करवा लाग्यो.
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नयनो खुल्यां....मुखमांधी उद्गार नोफळयां....वाह ....! आशु....! स्वप्न के सत्य....! हुं शुं जीवं छु...! हुं शुं लखु छु....! काव्य, कल्पना के कलमनी करामत !
जे कहो ते....पण प्रभुना चरणे सत्य समर्पण थाय छे त्यारे जीवननी क्षणे क्षण प्रभुमा तदाकार बनती जाय छे. श्रद्धानी रजकणोमां अंतरने विराटनो विस्मय जनक विसामो बक्षी जाय छे.
आवा दर्शन आका दृश्यो सहज नथी होता....मानवीना हैया-भावना दर्शनमां ज्यारे निखालस प्रेमनी परिमल पसरे छ त्यारे प्रभु एना नयनोमां....एना हैयामां आवी वसे छे.
बाह्य अंतर भले होय छतां अंतरमां अनंतर बनी सदा बसी जाय छे.
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- अपूर्व आराधना :
स्व. पूज्यपाद अगमोद्धारक आचार्यदेवश्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा. ना. पट्टप्रभावक पू. आचार्यदेवश्री माणिक्य सागर सूरीश्वरजी म. सा. नी. आज्ञावतिनो स्व. साध्वी पू. पूष्पाश्रीजी म. सा. ना. स्व. शिष्या पू. सुमलयाश्रीजी म. सा. ना. स्व. शिष्या पू. सूर्यकान्ताश्रीजी म. सा. ना. शिष्याओ पू. पद्मलताश्रीजी म. सा. तथा पू. मयणाश्रीजी (श्री सूर्यशिशु) म. सा. आदि ठाणा १३ ना पुनित पगला मद्रास, साधारण भवनमां थया, ने जाणो वोर वाणी अने सदाराधनानो सुयोग जाम्यो. तेमाये बाल, वृद्ध तमाम साध्वीजी म. नी आराधना कराववानी सुंदर रीतो अने प्रेरणा नो त्रिवेणी संगम मळयो.
__ प्रवेश दिनथी ज पू. सूर्यशिशु म. ना. व्याख्यानोनी धारा वहेवा लागी सौ प्रथम संगकारंग व्याख्याननी असर भावुको उपर विशेष पडी अने रविवारना जूदा जूदा विषयो उपर व्याख्यान रहेतां सौना हैयां कंइक मेळव्यानो संतोष अनुभवतां. खास हकीकत तो ए छे के तेओश्रीना बाल शिष्याओ सचोट शैलीमा स्वरचित काव्य व्याख्यानो मधर शूरथी मद्रास संघने अर्पताँ त्यारे तो कोई ओर धर्मरंग जागतो हतो. एक एक विषयो मार्मिक अने हृदयस्पर्शी हतां. जेवांके भावका झरणां, ज्वाला ज्यारे जलबने छे. अल्प विराम के पूर्ण विराम ? शूळी सिंहासन बने छे. अमरकुमार, कामलतानी करुण कथनी, झाझरना झमकारे चाले झाझरीआ मुनिवर रे, सासुनी सता ने
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वहुनी समजणता, चार चारना वलीदान, एक जिंदगी लाख लाख अभिनंदन, रे! पाप! पापनो पोकार (हरिश्चंद्र), विगेरे व्याख्यानो द्वारा अनेक आत्माओना हैयां धर्मानुरागी बन्या छे.
एटलुज नहिं पण तेओश्रीए पर्यषणापर्वमा बबे टाणा रही स्थळे स्थळे महानपर्वनी आराधना करावी अमारा संघने ऋण बद्ध कर्यो छ. बपोरेपण बहेनोमां भाष्य तेमज मलयासुंदरी चरीत्रनुं वांचन रहेतां घणां ज लाम लेता हता.
चातुर्मास दरम्यान सवारे ६ वागे प्रभ प्रार्थना थतां सौ होंशभर्या दिलडे साधारण भवनमा दोडी आवतां एक वखत प्रार्थनामां आवनार बीजे दिवसे आक्वानुं चुक्ता नहि. अनेक आत्माओ प्रार्थनानो विशेष लाभ लइ शके अने पूज्यनो विहार दरम्यान स्मृतिरूप घरे पण प्रार्थनानो लाभ लइ शके ए हेतुथी पूज्यश्रीनी प्रेरणाथी "दीलदीधां देवने" ए नामथी (प्रार्थना) पुस्तिका पण प्रगट थइ चकी छे. पर्यषणा पर्वनां प्रसंगे "पर्व पद्म परिमल" पुस्तिका प्रगट करवामां आवी हती. . वळी पूज्यश्रीए श्री स्वर्ग स्वस्तिकतप अने श्री सोमंधर स्वामीना अठुमतप, श्री शंखेश्वर पार्वनाथना अटुमतप, मोक्षतप ज्ञान दर्शन चारित्नो विगेरे सामुदायिक आराधना उत्तरपारणा, पारणा अने एकासणा व्यक्तितगत तेमज संघ तरफयो करावया पूर्वक, अनेक प्रभावना पूर्वक करावी हती,
__ तेमाये श्री सीमंधर स्वामीनी आराधनाए अमारी अंतर उमि छलकावो. अंतर जाणे महाविदेहमां जइ साक्षात प्रभुना
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दर्शन करी मोक्षगामी बनवा तलसाट अनुभववा लाग्यु. एनी स्मृति चिर रहे, तेमज ए प्रभुनी आराधनानो अनेक आत्मा लाभ लइ शके ए भावनायी अनेक आत्माओने श्री सीमंधरप्रभुनो प्रतिकृति आपदा पूर्वक प्रतिदिन १०८ जाप करवानो अद्भूत नियम आप्यो. आथी अमारी भावनाने वेग मळयो अने पूज्यश्रीनो प्ररणाथी सीमंधरजिननी जीवन झांखी सकल जीवने थाय अने सविशेष आराधन करवा उद्यत थाय तेथी आ पुस्तक प्रगट करवानी भावना जागो. चातुर्मासनी समाप्ति अने पूज्योनो विहार नजदीकमा होइ समयनी अल्पताने कारणे, ने पू. श्री सूर्यशिशु म. अन्य पुस्तकना प्रकाशननी तैयारीमा होवाथी प्रभुना जोवन लेखननो प्रारंभ करो कलमने आगळ वधारवा पू. श्री अमितगुणाश्रीजी म. ने. आज्ञा करी. गुरु माज्ञा तहत्ति करी, अमारी भ वना तेओए पूर्ण करी. आवा सद्गुरुओना उपकार कदी भूलाय तेम नथी.
श्री पार्श्व युवक मंडळ ने पूज्य सूर्यशिशु महाराजनां प्रभु भक्तिनां प्रकाशनो जोइ, मंडळ तरफयो पुस्तक प्रगट करवानी भावना जागृत थतां, पूज्यश्री ने ते भाटे विनंति करी. बाद पूज्यश्रीए स्वरचित स्तवनो आदि तैयार करी, भक्तिनी मसती मामे बुक प्रकाशित करावीने, पोताना ज्ञाननो लाम श्री युवक भंडळ ने आप्यो छे. आवा ज्ञानी गुरुदेवोनो सुयोग सदा प्राप्त याय एवी प्रार्थना साथ विरमीए छोए.
श्री जैन सघ
मद्रास
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ne
-
श्री सीमंधर प्रभुश्रीनी जीवन झांसी
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प्रकरण...पहेलु -: निसर्गर्नु अद्वितीय दान :
विश्वना चोगानमा एक मोटो प्रश्न छ, सुख क्या? छता मानवोन एक ज ध्येय छे के सुख भलो। सुख ने माटे दोडधाम अने सुखने माटे अनेकविध काम...
मानवी सुख पाछण पागल थईने अनेक गडमथल करे छ। विराट आकाशनी सटेलगार सेवे छे। अंतर-उन्डा सगर अने धरतीना पेट चोरी भीतर ने अनुभवे छे। सुर्य नो आतापना अने चंद्र नी शीतलताना कीरणो सागे आफतोना पहाड़ो सामे अने दुखना दावानल सामे पण टट्टार रहेवाना प्रयत्नो करे छे, एक सुखना केफ पर...
इंद्र तुल्य संपत्ति शौंदर्य अने सता मलता पण प्राणीनी अंतर आग पण जलन बने छ। आग जेवो तृष्णानी सत्तामा है विश्वना कोणे कोणे अने कणे कणे धूमी वले छे। परन्तु जे सुखनी तमन्ना अने एषणा छे ते हाथमां हाथताली बई कयांक सरको जाय छ। दुःख नो ज अनुभव थाय छे अने चित्त बहावरे बने छ । अंते धवायेला वाघनी माफक (बेफम) दोट मुके छे। ऐ आंघली दोट मा ते काईक खुवारी करी बेसे छे। नैतिक धोरण चकी जाय छे...गुणोनुं दफन थाय छे...
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सत्यनें दफन थाय छे.. आदर्शोनु मरण नोपजे छ... करूणान गक्तु भीसाय छ। अने छेवटे ज वन नरो कुरतानं दर्शन बनी जाय छ।
ते पण जीवनना अणुए अणुए अंगे अंगे सुखनो नशो चढे छ। सुख उमराय छे अने वेराय पण छ। आ घटमाल मां सुखनु कल्योन स्वप्न, स्वप्न ज बनी रहे छे, अने ते अंधारी खीणमां जई पडे छे, त्यारे अंतरनं आंद आकार पामी बहार नीकले छ । हैया दुःख वराल बनी आंखोथी वरसाद वरसावे छ। शरीर कौवत कथली जई कायाथी पामर बनावे छे। जीवननी लाली आकाशमा उडी जई संध्यान दर्शन करावे छ ।
जीवन जीवता छता नरकनी यातनानो आर्तनाद...
सक्रिय छता यंत्र समान जडतानो अनुभव... प्राण छतां कारमा मृत्यनो अंजाम...
दर्द दिल दशा बरी छ, भव्य भूतकाल ने देखे छे अने विरहथी वर्तमान ने व्यथित बनावे छ। व्यथायी व लोपात करतो प्राणो भिखारी बने छ। भीख माटे पुकार करे छ।
दुःखथी रिबाता नयना याचना करे छे सथवारनी...
हैयानी हाय ने सांभलनार कोई कदरदाननी..,
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प्रेमना पाणोना अमी छांटी जीवन सजीवन करनार कर्णधारनी... अटळमां अटवायेलाने सत्यनो प्रकाश पाडनार कोई मार्गदर्शकनी कारण आत्मानी चाहना सुख अने शांति छ । दुःख अने दर्द एने मान्य नथी।
कुदरतनं शासन कोई अगम्य अप्रतिबद्ध छ...
"ज्यारे ज्यारे दुनियाना आंगणे हिंसाना तांडव नृत्यो खेलाया छ, तृष्णावा झंडावात उठया छे" सदाचार, सुविचार अने विचार नो दुष्काल पडेलो छ। वैर, विरोध, सोमनी भयंकर प्रलयो सर्जाया छ। धर्मनो नाश नोर्तरायो छे। त्यारे त्यारे कुदरत करुणाळी बनी छे। धरतीना आनंद मांथी आनंदना रंजन भाटे...
विखवादमांथी संवादना सुसर्जन भाटे...
अशांती भांथी शांती ना स्थापन भाटे...
आगना सर्जनमाथी अनुराग ना संयोजन भाटे...
असहाय निराधार मां आधार भाटे...
करुणाल निष्पक्ष-निसर्ग, जगने अद्वितिय दान करे छे कोई पयगंबर के कोई परमात्माने...
पृथ्वीना आंगणे परमात्मा अर्पण... अवनीना आंगणे अरिहंत प्रमुनु आवागमन...
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धर्मना ध्वंस थी धससमती धरतीनी खोणे दयानी अवतार अवतरे छ, अने त्यारे कोई अनोखा जादू थ य छ ।
सुर्यना आवागमन पहेला ज विश्वना अंधारने उपाना तार चोरी विदाय आपो दे छ। गगनांगण, धरतीन आंगण अने सोहांगण अजवालाथी छलकी जाय छ। विश्वना समस्त पदार्थ अने पंखोगण अने मानवगणमा चेतना प्रकाशी उठे छ।
दुःख भूलो सुखनी आशामां प्रयाण आदरे छे तेवी ज रोते परमात्मा-तिर्थकर प्रभुनो मातानीकुक्षीरूप धरतोतलमा प्रवेश थतां ज दुनियाना अणुने० परमाणुमां शांतिनो संचार थाय छ, सागर अने सरितामा संगीत उठे छ। समीरमां सौरभ उठे छ ।
साते नरकोमा यातनाथी रीबाता नरकोने पण क्षणभर शांति अने प्रकाशनी प्राप्ति थाय छ ।
अवनी पर अवतरनार अरिहंत प्रभू मात नी कुक्षीमा वृद्धि पामे छे; तेम तेम माता पिताना कुलनो राज्यनी, अने पोतानो यश, किति, प्रतिष्ठा, तेमज प्रतिभा वृद्धि पामे छे। संपत्तिनो ढेर रचाय छ। देवो पण सेवा करव' हजुर, हजुर, थईने रहे छ। वैरी वश थाय छ। विश्वना प्रतिकूळ भावो अने पदार्थों पण अनुकुळनाने समर्प छ। आ छे निसाना अनुपम अवतारनी अगमनिगमता...
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प्रकरण...बीजु
-: अंतर तलसाट :
तीर्थकर परमात्माना समयनी, धर्मनी रोशनी अने जीवननी खुमारी...केवी अद्भूत हतो!
जीवननी घेरी निशाने भेदी चमकार करता प्रकाश जेवी... शंकाने धूम्मसने बिखेरी ज्ञान पुंजना सुरज समान.. अज्ञान राह पर चढेलाने दुःखनी लाय पर शीतलता करनारने सलिल वारी सरीखी...
अधीरने धरतीनी धीरज...
तुच्छताने सागरनो गंभीरता... अशांतने शांतिना पति...
अधर्मना आताप पर धर्मनी चांदनीनो प्रसाद करनार प्रभुजी आज तारी याद आवे छे.. आज तारा मूतकालना भव्य दर्शननी प्याली मारा अंतरनी भीठी प्याली बनी रहे छे!
आज तारी वाणीना निर्मळ पाणी मने आत्मानी निगाहमां लई जाय छे ताणी...
तारुं आपेलं दर्शन-वाणीनं बलोणं मने बलोवी नाखे छ। खरेखर तारी अस्ति विना दुनिया अजंपाने रस्ते छ।
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तारा दर्शन विना दुनियाना सर्व दर्शन निरसन छ.... तारा साथ विना सर्व संगाथ अनाथ जेवा छे...
तारा आधार विना सर्व आधार निराधार छ...
तारा विना अमारानी खबर बेखबर ज छ...
हे प्रभु! हे किरतार · तुं तो कृरासागर छ. . . जगतनो रखवाळ छ। हुं वधु शुं कहुं, तारो ज विश्व पर विशेष उपकार छ. . .तुंज दुनियाना कल्याणनी दोर छो, मारा अंतरनो ईजार छो, अने हुं तमारा दर्शन माटे इंतेजार छु ।
आज चारे बाजु विषम वातावरण आ भरत सर्जायु छ, ज्यां ज्यां नजर करीजे त्या त्यां जाणे अध्यात्मनी कुंजार पर ठारी दे, एवी विलासनी कातिल अने शीतल ठार. जोवन मुरजावी नांखे एवो होम शीतलता सामे कोण कामयाब बनी शके?...
आवी कपरी दशामां कोनं शरणं? कोन आलंबन ? कोण रक्षक ? कोण राही?
शुं सत्य ? शुं असत्य ? कोण भेद बतावे ? मननी शंकासमाधान कोण निवारे प्रश्नना तरंगो कोण समावे? कोण सत्यपंथ राही राह बतावे? आवी परिस्थितिमा आत्माने पथदर्शक तरीके एक अमुल्य भेट छ । ते आगम... सिद्धांत, के जे आत्माना दर्शन करावनार नयन समान-सूताने जगडनार ऐक गुलाबी प्रमात सरखा छे। अंधानी लाकडी समान काम करनारो छ। छतां
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तारा विरहनुं तडपन जलावे छ, साचेज "तडपन करता तृप्तिनी नजर प्राणीने प्राणवान बनावे छे" एथी ज तो आ विषमकाळनी विषमतामां पण संत श्री वीरविजयजी महाराज तृप्तिना आनंदमां लखे छे के, "हे प्रभु तारुं साक्षात दर्शन नथी ए अमारु कममाग्य... परंतु सद्भाग्य ए छे के जिनागम-आंख अने जिनमंदिर अमारा जं वनना धमकार समान भल्या छ।
जेना आधारे प्राणी अल्प समयमा आराधना द्वारा आत्मकार्यनी साधना करी जाय छे...
थोडा समयमां घणुं काम करवू एज खुमारी छे। तेमांज अमारी तृष्णा-तृप्ति पूर्वक प्रयास करीशुं तो पछी हुँ घणो दूर नथी। पण ज्यारे संसारनी अगथी हैयानी धाग बेसी जाप छ, त्यारे एना तरफ नजर करवी मुश्केली छ।
माटे रहेम नजरी! अमारी पर कृपा करी श्रद्धाना संजीवन सींचजो जेथी तारा फरमावेला पानाना काळा अक्षरो अमारी हैयानी हाम, ओथ, अने प्राण बने.. तारी भक्ति अमारी शक्ति बने...
तारुं स्मरण अमारा कर्मकलंकनुं मारण बने...
तारं अर्चन अमारी सिद्धीन कामण बने....
ऐ, उपकारी महावीर प्रभ तारा शासन ने न पाम्यो... परंतु तारो वियोग. तारुं आगम पाम्यो पण तारा साक्षात दर्शननो विरह.. तारा शासनना रंगथी हैयामां तने निहाळवानो उमंग छे! पण क्यां मणे? ए अरिहंतना दर्शन, वंदन, पूजन
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कयांथी ? एयो ज तो तारा प्रतिबिमां भावना आरोपणे नं साक्षात दर्शन पामी जीवनना नयनने कृतकृत्य करुं छु ।
हा, तारा आगमनी आरसीए प्रकाश्यं छे के महाविदेहमां श्री सोमंधर स्वामी आदि प्रम बिराजमान छ। वर्तमान काळमां विचारता तेओ तिर्थंकरो ज छ। अने तेओमां तीर्थकर समान ज गुणा-भावे छे, तो ते विचरना प्रभु भरत-क्षेत्रना रोबाता मानवी भाटे प्रेरणारूप छ ।
श्री सीमंधर प्रभुना साक्षात् दर्शनथी कक भव्योनो उद्धार थनार छे.
रणमां जलन दर्शन दुर्लभ छे लेम भ्रमथी भरेला दोषीत भरतना मानवीन पूण्य छे के तेओने कल्पवृक्ष अने कामघटथी अधीक महिमावंत श्री सीमंधर प्रभुनी सेवा मळो छे.
किंतु प्रत्यक्ष दर्शन दुर्लभ छ ।
भरत क्षेत्र अने महाविदेह क्षेत्र बच्चे हजारो माइलोनुं अंतर छ। उंचा उंचा पहाडो.. मोटी मोटी नदीओ.. भयंकर जंगल अने भयंकर वनचरो मार्गमा अवरोध रूप छ।
जेन पूण्य प्रकृष्ट होयतेज हजारो अवरोधोने अने हजारो माईलोना अंतरने आंबीनेय पहोची शके छ जना घणां कर्मो खपी गया छ... जे निकट भवि छ... जेने सुरवरनी सहाय छे ते ज व्यक्ति महाविदेहनी स्वर्गसमान पूण्यमूमियां आववान परिवळ प्राप्त करी शके छ।
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अंतरनी आगने पखाळी ज्ञाननो प्रकाश पामी शके छे। महाविदेह ना पहोंची शके तो ते भरतां रही भाव थी श्री सोमंधर प्रभुनी प्रार्थना स्तवना करीने साक्षात्दर्शननो अनुभव प्राप्त करी आत्माने धन्य बनावे छ ।
"हजारो भाईलने अंतरे रहेल सूर्यनारायण तेनी प्रमा वडे पृथ्वीने प्रकाशीत नथी करतो शुं"! ...
सरिताना सलिल बिंदुओ केटलाये विस्तारोमा प्रसरी धरती ने प्रफुल्लित नथी बनावता शुं? ते ज रोते अंतरभावना हजारो माईलना अंतरने आंबी प्रभुजीने चरणे नहीं स्पर्श शुं !! शुं प्रभुमिलन पण न भनावी सके ! एयो ज तो भरतना मानवी विरहमान प्रभु श्री सोमंधर स्वामी ना दर्शन माटे तलसाट अनुभवता अंतर भावना थी समवसरण मां पहोंची दर्शननो लाभ लई आत्मपर्शन करे छ। अने भी सीमंधर प्रभु साथे अंतरे अंतर मीलावी, दुःखनी कथनी अने व्ययानो ताय करे बीजना चंद्रमा जोडे संदेशा मोक ले छ ।
श्री सीमंधर जगधणी आ भरले आवो करुणावंत करुणा करी अमने वंदावो।
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प्रकरण...त्रीजें
-: ओळखाण :
पुणिमाना एक प्रकाशे धरती खोली उठे छे... सागर तरंगीत बने छ। तेम श्री सीमंधर स्वामीना ध्याने भावना हैया डोली उठे छ।
पूज्यनी सेवा करता पूजक पूज्य बने छ भमरीना ध्यानथी इलीका भमरीपद प्राप्त करे छ। राजसेवक राजसेवा करता एक दिन राजपद पर चढे छ। तेम भक्ति करता भक्त भावनामय बनता भगवान पासे पहीची जाय अने कर्मनो कच्चरघाण करी दे छ। आत्मानी साध्यदशाने प्राप्त करावनार एवा श्री सीमंधर प्रभुने हे. दुजना चांद...मारी खुब खुब वंदना कहेजे...
प्रभु श्री सीमंधर स्वामी महाविदेह क्षेत्रमा बिराजमा न छ। जंबुद्विपनी चारे तरफ पाणीना तरंगो उछालतो लवण ससुद्र छ । नगरकोट भयथी रक्षण अने शोभानुं कारण छे, तेम जंबुद्वीपनी वेदिका अने वनखंडो एक दिव्य शोभा छ, अने रक्षक छ । बराबर मध्यमां मध्यबिदु समान सर्वश्रेष्ठ, सर्व पर्वतोना राजा मेरुपर्वत छ।
हे! चंदा, तेम जेनी आजुबाजु प्रदक्षिणा फरी दिनरात ओवारणा करी समय वितावो छो ते...
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मेरुपर्वत महाविदेहनी यश-कितिस्थंभ छे, जाणे बिरुदावली बोलनार वागभट!... मेरुपर्वतथी महाविदेहना चार भाग बने छे... पूर्व महाविदेहमा पुष्कलावतं देवथी अधिष्ठित पुष्कलावती नामनी आठमी विजया जे गहांगणमां खेलती नवयौवना सभी शोभी रही छ। नृत्यांगनाना केशकलाफ्नी शोभा एक कोमळ काय पुष्प बनी जाय छ। तेम पुंडरिकगिणी नगरी पुष्कलावती विजयाने विशेष शोभ वनारी छ ।
पुष्पमा परिमल प्रसरी रहे छे, तेनी पुंडरीकगीणी नगरीनी समृद्धि, शोभा, अने त्यांनी कला सौंदर्यनी परिमले हजारो प्रेक्षको ते नगरीने नोरखवा भाटे नयनोने तृप्त करवा काजे...भ्रमरनी जेम दोडी आवे छ ।
गगनचुंबी प्रासादो अने माणिमाणेक विगेरे जव हारोनी ज्योतिथी भडेला प्रासादनी चमकीली वांदळ साये वातो करता जैन चैत्यो वणी नयनाकर्षक हाट अने चौटानी संदरता, धर्मगृहो, वनविश्राम, आरामगृहो, उपवन-बगीचा विगेरे नगरीनी समृद्धि, शोभा ते कलाना वेनभून नमूना छ ।
चैत्योनी उन्नत धजा फरकी फरकीने पोताना नगरना नरपतिनो अने देशनी आबादी अने यशने चारे दिशाओ पहोचाडती न होय एवं जणाय छे. राजा अने प्रजानी प्रीत दूध-साकर जेवी छ.. राजा नीतीवान, धर्मी अने प्रजाप्रति पूर्णप्रेमी छ प्रजाने पण राजा प्रति एटलुंज बहुमान अने समर्पण भाव छे. धर्मचाहकता • व्यवहारी कुशळता अने व्यापार कुशलता छे. ते देश, समृद्धि
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पी आबाव छ, न्याय मोतिने गुण छे त्यां नम्रतानो वास छ, कोतिनो आवास छ।
गुणपी समर देश आबाद बने छ... गुणषों समर राजा प्रजाप्रिय बने छ गुगथी समर आत्मा स्वभाव दशामां लोन बने छ...
मुख्यता ए छे के कोई खुणे पण हृदय विदारक नयन द्रावक...करुणता देखातो नयो क्याय पण गरीबोनी तनहाई न हत', सौ सुखी हता। आ नगरीता राजा श्रेयांस ाय छ, नाम प्रमाणे ज जेना गुण छे. प्रजाना अने पोताना श्रेयने साधनार छे. द तारीमा दानेश्वरी जेवा...जेना जोवनमायो नकार शब्द अदृश्य थई गयो छे. जेणे धर्मना योगथी जीवननुं मुख्य अंग दान बना युं छे. जे संपत्ति, समृद्धि, मलो छे ते क्षणभंगुर छ, तडका-छ या, जेवी चंवल छे... राजलक्ष्मी ए प्रज नी लक्ष्मी छे. प्रजाना सुबने मटे वापरवानो छ। लक्ष्मीथी कृतार्थ बनवा माटे, लक्ष्मीनी ममता घटाडवा माटे, दान ए अमूल्य छ।
वान थको भव पार करो जवाय छे...एथी तो प्रमुए संपारीने प्रथम महत्व अने जरूरीयात नो उपरेश करवा दाननी वर्षा वरस वो छ, संयमने स्वीकारता पहेला...
श्रेयांसराय दानना भूषण, बाननादूषण, अने पामावामनो विवेक बराबर समजे छ...
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कुवामांची पाणीना वपराशथी नव पानी भगय छ तेम श्रेयांपरायना भंडारमां हमेश दानवर्षा च लु घतां अखुट समृद्धि रहे छ।
रामा श्रेयांसरायना गुणने, स्वभावने अनुम्ल, राणी सत्यको पण शील, रूपने लावण्पनी प्रतिमा छ ।
धर्मना अलंकारथी एनुं लावण्य अनेकगणुं दीपो उठयं छ । कमल तो रात्रे के दिने खले परंतु सत्यको राणीनं मुखकमल रात दिन हास्यपरिमलथी वोकसित रहे छे ६४ कलाथी दे दोय्यमान एन जीवन जोई हे चंदरराज तुं पण हैये बळे छे एटले ज तुं क्षण थयो छ। उत्तम राजार णी अने प्रन थी सुशोभित पुंडरोकर्गःणी नगरी विजयनो प्राण छ।
प्राण विना देह धडकतो नथी.. प्रभु न होय तो पुंडरीक गोणीनुं महत्व कयां? पुंडरीक गीणीनुं शौर्य ए छे के तेने बे वैभव ने जीत्या छे. धर्म वैभव.. धन वभव...
धर्म दातार......धन दातारी .... जेनी सानिध्यमां छे. पुष्कलावती विजयनो पूर्वे नीलवंत पर्वत केवो शोभी रहेल छे....
आतम साथे वातो करतो ध्यानमग्न कोई अवधून योगो...
पश्चिम तरफ सीता नदो ज.णे श्वेत वस्त्रो सर्जेली परिवारिका विजयाना पाद पखाळती।
उत्तर तरफ एक शेल नामना वक्षस्कार पर्वते तो सौंदर्यनी पराकाष्टा पर हद करी दीधो !
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मानानी गोद गं खेलना बालक दाय के मोड़ें, सोहाम लागे छे तेवो रोते ते विन्यानो गोदमां वनस्कार पर्वत शोभे छे..
बालकना नमणा, नाजुक, मुखना दश्य जेवू हास्य, शाश्वता चंत्यनो हारमाळा छे. जे हसी रहो भन्यांना दिलने, भ वने बोलावो रही छे. जेना दशनथो जोवर पावन बनो जाय छे, आ सर्वे जड छतां सौंदर्यमय पदार्थो प्राणोने महान संदेश पाठवे छ...खरेखर जोवन पण जो गुण सौंदर्यनी चमकने नही प्राप्त करे तो ते जोवन जीवन नयो पग मृत्यु समान छे...."सुरज चमकथी रसदार जोवन ज सन जनुं स्मृतिनिधान बनो शके छे" ए आत्म उत्थान करी शके छे. सुरज चंद्रना किरगाना अभिषा थो आ हारमळा तेजने प्रस रे छ।
___ आ पर्व गोना परम आराध्य-प्रतिकोनी पूजा भावना माटे देवो उत्पाहोत होय छे. प्रभुना जन्म समये त्यां देवो उत्सव करे छ. विद्य चार ग मुनोमो त्या विद्या प्रभावे जाय छे.
परंतु हे चंद्र ! अमे प्रभावहीन, पुण्यहीन, जनविहीन त्यां कई रोते पहोचो श कोए, तो तुं अमरावती ते चैत्योने भून्या वार वंदनावली पाठव श सेवो आशा साथे विरमुं छु...
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प्रकरण...चोथु -: प्रभु जन्म :
जे जीवन- दरेक प्रभात आशा, अरमान अने पुरुषार्थथी मरेलुं छे मानवीनी कल्पना दृष्टिना अरमानोने आकार आपवानी ताकात ए निसर्गनो अनुपम प्रेरणामां भरी छे.
निसर्गनी कर्तव्यरता जोई कथा चेतनने चमकार न जागे । परंतु ए स्थल दष्टि पहोचे कयाथी निसर्गनो सुक्ष्म निगाहमा ।
___धन वैभव...अने धर्म वैभव, गुण, सौंदर्य अने कला सौरभ थो...महेंकतो ए रमणीय वंदनीय धरणी पर सदा वसंत गाजतो लागे छे. वसंतराजना गुंजनमा मस्त बनी समस्त वन राजी राचती लागे छे जरणाना खलभल वहेता पाणामां जाणे मुक्त हास्यना नाद साद करे छे...
पृथ्वीमां सौरभ छ, वायमां बहोली शीतलता छ... पशुपंखीना मधुर गान बंसीना तान जेवा मनोहर छ...धारे बाजु मानंदना रंग फवारा उडौ रहया छे, ए पवित्र भूम ना पालक धेयांसराजाना दरेक प्रभातनी भात मां कोई तरतमता हती...
एना अंगे, अंगे प्रभाते अने राते उषा अने संध्याए एक्ज भाव अने एक ज प्रभाव हतो मानव कर्माधीन छे कर्मो मानवनी साथे ज छ...कर्मोनं फळ ए प्रारब्ध छ प्रारब्धनी पिछान पुरुषार्थ पर छे.. कुदरतनी सत्ता कोई अगम्य छ...
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आ वातो राणी सत्यको पण समजती हती, ते छतां एना प्रभातमी अने रात मा जुदाई हतो।
प्रभातमां अरमान अने रातोमा आरजु .. मुख पर हास्य अने आंखोमां आंसु... गात्रोमां शिथिलता अने वातोमा निर्मळता...
अढळक संपत्तना ढेर अनेक सगवडत नो भहेर छतां नारीना अरमान मतृत्वना परम मंगलने चाहे छ।
नारो जोवननो खुमारी जननी पी विशेष खोली उठे छे... अंतर- आभलं पूणिमानो चांनी जेवं छलकी उठे छ...
राणी स.यकीनो आरजुर कुदरतना कर्णपटे टकोरा दई दोधा। अने प्रामाने कुदरततो चेतना जगावो दोधो...निसंगनी कलानो आण वर्ताई ..
स्वर्गनी वाटे रहेल अरिहंत प्रभुना आत्माए आवो पृथ्वी पटे पाम आनः छवाई गया, विश्वना कोकण पदार्थ अने प्राणी चेन अने शांतीनो सरगम बाजो उठी नारकोना दुःखी नार कोने पण क्षणमर शांतोना अनुभवमा पडया...प्रकाशना पशमां पडया .. सत्यको राणीनं अरमान अरे अ'वोने पुणताने इच्छो रहया। मान प्रभ त अने रात राणाने मन समान हताः प्रभातना पुष बेई हास्य रातनी राणो लजामण न हास्य बनो गयें। सागर तरंगे अने हैग उछरंगे आज ऐकयता.मित्रता साधी हती. जोबन ऋतुराज खोली उठयो, अंगे अंगे बहार वरसी हतो.
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माजनी सुरम्य निशानी नीदर अने अदभूत एवा महान १४ स्वप्नो!.. केवी सुंदरता हती एमां!.. आज श्रावण बद एकमनी रढोयाळी रात्री बनी...मनोहरणी हरीयाळो. वाडी...
घडी घडी एने याद करता सत्यको राणीनं मन थई मतं गुलावी प्रभात...
१४ महास्वप्नो श्रेयांसराजाने संभळाव्या एना फळमां महाराजाए फरमाप्युं, अने स्वप्नपाटकोनो अभिप्राय एक ज मध्य विदुनो हतो.
स्वप्नफळ सूचवे छे के पृथ्वीना तलमां रत्न निधान तेम गणीना महान उदर मां कोई महान अंश पुष्टि छे. आ महान स्वप्ना दर्शन करमार, तीर्थकरने जन्म आयशे. तीथंकर प्रभुना पुण्यना उत्कृष्ट बंधन द्वारा आ स्वप्न दर्शननो लाभ तेनी म त ने भळे छे.
स्वप्न पाठकना फळने मान्य करी तेनुं अपूर्व बहुमान करी विसर्जन कर्यो...
क्या कया चौद स्वप्न छे तो ते: गजवर फलनो माळ पद्मपरोवर घषभ चंद्र विशाल समुद्र सिंह रवि-ध्वज विमान
लक्ष्मी कलश रत्नराशो-अग्निशीखा संसार असार छे छतां आवा सार रूप महंतना जन्म संसारमा चारे बाजु सुखनी वर्षा वरसाय छे. पदार्थ तमाममा कई अद्भुत ताजगी आवे छे. दिशाओ जाई लो निशा जेवी धेरो नही पण जागत बनो जाय छे. पोताना कुक्षोमां प्रभुनो
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उदय छ जाणो लत्यकोने आनंपनी अवधी कयायो होय । तन, बन, जोवन-रोम रोम पुलकीत बनो गया।
रातोनो आरजु अने प्रमातनो प्रार्थना फळी, हवे ते सुख पूर्वक गमने वहन करे छ, नवा नवा अने उत्तम दोहदोने श्रेयांसराय पूर्ण करावे छे...
दिन पर दिन आंखना पलकारनी जेम व्यतीत थई गया. ज्यारथो प्रभुजी उदरमा हता त्यारथी श्रेयांपकुमार राजाना 'ज्यमां धन, धान्य, यश, प्रतिष्ठा, प्रतिभा विगेरेनी सर्व प्रकारे वृद्धि हतो आज एथी पण विशिष्टता हतो।।
भरतक्षेत्रमा विचरता कुंथुनाथ प्रभु मोक्षे सीधाच्या अने विरही भूमि पर अरनाथ प्रभुनो जन्म थयो तेना अंतरमलनो आ शुभ समय हतो.. वंशाख वद १० दशमी नो शुभ दिवस चमकायमान हतो। घडी, पळ नक्षत्र दिवसना शुभ लग्नमां चद्र आवे अने उच्च गहनो योग थतां साडानव महिना व्यतीव थता...
सन्यको राणीए रूप रूपना अंबार जेवो जाणे चांदनी टुकडो जोई लो ..नवन तनो भुलायमता अने पुष्य नो कोमलतागुणोनी सुंदरता जेमां भरी छ. दुनियाना सौंदर्यताना अने शांतरसना परमाणु जेमा जडायेला छे एवो कोमल काय सरोखा अणज्ञानधारक पुत्रने जन्म आय्यो...
श्रेयांसराय- विशाल आंगण आज अनन्य चेतनाथी छलकाई उठ्युं छे. सत्यकोनी जीवन अवनी पर आनंद केवा? वरसता अषाढनो हेली उठो, मन मयूर रहको उठया...रोमराजी नर्तन करवा ल गो
भावना ताल ठमको उठया.
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प्रकरण-पांचमु -: जीवन स्वस्तिक :
सृष्टि पर ज्यारे श्रेष्ठ सर्जन थाय छे त्यारे शुन्यतामां पण अनेक रगो पुराय छ। त्यारे सर्जन करता सजनहारने सह अभिनन्दन-धन्यवाद आपी रहे छ ।
रंगोमांये ज्यारे रंगोलु मनने भरी दे एवं वातावरण जामे त्यारे जगतमां जनगणनुं रूप बदलाई जाय छे. आजे एनो कल्पना करोए तो पण मन महेकी उठ...विश्वनी विराट कयमा आजे न समजाय तेवू नतंन हतुं. वायुमां...पृथ्वीमां...पाणीमां... तेजमां...आकाशमां कोई और दिप्ति हता। आकाशमांये देवदुंदुभी गड़गड़ी रही। श्रेयांसरायना प्रासादे पण पुत्र जन्मनी बधाई जता निशान, ढोल, मृदंग वाजी रहया। घर घरमां आनह उधळो रहयो...गली-गलीये तेना तरंग फलाई गया... बधाई देनार, राजा पासेथी धणुं धणुं पामी गयो। सौधर्मेन्द्रन सिंहासन चल यमान थयुं प्रभुज ना जन्म जाणो मन भक्तिथा उछळो रहयुं। समग्र देवलोक सुघोषाना रण कता मधुर निनाद अने ईद्रना आदेशे गाजी उठयो। सर्वे तरंगोमां वहेता हता .. पुण्यनो कमाई करवा, पूज्यनी पूजा करवा, आनंदना आलमना रसास्वाद करवा कंईक तयारीओ करवा लाग्या ।
दार हजार सामानिक देवी, १६ हजार अंगरक्षक देव सहित.. एक योजन प्रमाण विभानमां बेसीने छप्दन दिककुमारीको
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हाजर थई सूतिकाकर्म करवाने. अघोलोकनी आठ कुमारीओए सबत वायुथा एक योजन प्रमाण भूमिका शुद्ध करी उर्ध्वलोकनी मठ दिक्कुमारीआए सुगंधो पुष्प मळनो व ष्ट करो...
पूवरुकनो कुसारीओए दर्पण धर्या... दक्षिणरूचकनी दिवालाओ ऐ आठ कलश धा...
पश्चिमनी अठे पंखा धर्या...
उत्तग्नो आठे चामर ढल्या... चार विदिश रुचकनी चारे दीपक धर्या...
रु वद्विग्नी चारेए प्रभुनो नाळ क.य्यो अने व्रण केलीधर बनाव्य ...
दक्षिगमा मदन करे, पूर्व गृहमा स्नान कराव्युं, उत्तर घामां अरणा मां अग्निमां चंदनना धूम कर, प्रभुने रक्षा पोटली बांधो। अने एक कदला गृहमां प्रभुने तेना माता सहित समालपूर्वक सूवाडया...
सौधर्म इन्द्र समामांग उठी प्रभुनो जे दिशामा जन्म थयो छ ने तरफ गया. मस्तके अंजलिपूर्वक हाथ जोडी बहुमानथी, उछळते हैये सात-आठ डग भरा शकस्तव द्वारा स्तवना करी. हे प्रभा खरेखर भोगमां भूला पडेलो दू नयाने भक्तिना झले मलाववा आप भीमोया तरीके छो. विश्व भाज तारो मायाने छाडी संवारनी मायामां रक्त छे. तेने सत्य समजय आपो
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प्रकाश पंथे लाववामां तमेज एक समर्थ छो आ प्रमाणे अंतरना भावभक्तिना ओवारणा कर्या, सौधर्म इंद्र महाराज पृथ्वी पटे प्रभनी माता पासे आवे छे कईक देवांनी कतार साथे ...
उमिनी सितार बजता सगोतनी रमजट रेलाय छे. ज्यां जुओ त्यां वृष्टि, पुष्यनी, धननी, कंवननी, वस्वनी, धान्यनी आज आखीये पुंडरिकगणी नगरीनी आभा न बदलाई गई । इंद्रे प्रभुनी मानाने धन्यवाद आपा नमस्कार करो प्रभुनो जन्म महोत्सव करवा म.टे विज्ञप्ति करी ।
10
प्रमजीनी माताने अवस्वापिनो निद्रा ना धेन चढाव्या । प्रभुजी ना प्रतिबोंधने तेनां पासे स्थापन क • इंद्रे पांच रूप to... एक छत्रे धर्मं, एक वज्र उलाळे, बे चामर ले छे.. एक प्रभुजीने हाथमां धरी... भक्तिना उछरंगथो मेरुपर्वत पर लई चाल्या... पाछन असंख्य देवी नाच गान करता अनंद विभोर बनी, कोई कोई आश्चर्यथी कोई कोईनी प्ररण थी कोई कोई भक्तियो, जन्मोत्सव नोहाळवा चल्या...
समस्त अवकाश देवोना रूपयी आच्छादित थई गयं अने पर्वत पर प्रभुजीनो जन्माभिषेक एक करोड ६० लाख कलश थी ६४ इंद्रो कर्यो आ कलशा आठ जतांना हता । क्षीरवर, ईश्वर, विगेरे उत्तम समुद्रना अने गंगा नदीनुं निर्मल जल लाव', औषधी चरण मिलावी... पंत्राभिषेक कर्यो··· आ जल अभिष यी तमारो देह शुद्ध थाय छे पण अमारो अत्मा तारी भक्तिना बारी थी शुद्ध थाय छे। प्रभु ए वळगानी धाराथी विह्नन यता नथी ? समस्त जगतनी सहयशक्ति प्रभुता परमाणुमा छे
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जे शक्ति सर्व जीवोना सुखनी आशा. भावनाना संगीन मूळमायो प्रप्त थाय छे. तीथंकर पणानी प्राप्ति “वश्वमित्रो" नो आभूत पराकाष्टा विना प्राप्त नथी ? ए भावनाना बळ बडे न समस्त दुनिया इंद्रो, देवो, असुरो, ज्योतिष, देवी, नरेन्द्रो, अने कुररत पण जेने चरणे नभ्रीभूय बनो जाय छे...जेनो सेवा माहे... बेना दर्शन काजे.. अंतरेतलसाट होय छे... तरंग होय छे...
आवा अनुपम महोत्सव ए एनी प्रतितो छ...
कुदरती जन्मल बाळकनी आवो अखुट धीरता.. जोई मिथ्यात्वी देवो संभ्रममां पडी जाय छे.. कोई आश्चर्य पामे छ ।
विश्वन' सार वस्तुथी प्रभुनु अर्चन, पूजन, सुंदर अलंकारथी आभूषित करी, गुण स्तधना करता देवो नृत्यपान करे छ... भरतने हरण करनार प्रकाशना मंगल वेरनार अने अंतरद्विपने मलावनार एवी आरति करे छ। अने प्रभने आशीर्वाद आपे छे, "चिरंजीवो विश्वनं कल्याण करो... सुधी जगत पर सूर्य चंद्र प्रकाशे त्यां सुघी.. भूमितलने अजवाळो ।
जेवी भावभक्तिथो प्रमुज ने मेरुपर्वत पर लाग्या हता तेवी भक्ति आ ओक जडमां पण वरसो रहो, मेरुग्वंत मानतो हतो के परेचर मारा जेवू उत्तम अने धो तावाळु दुनियामां कोई नयी। पण खरेखर भाराथी अधिक बल एश्वयवान प्रभु मारा देह पर मावो वस्या, मारा देहने पावन कर्यो... मारे अहोभाग्य छ।
भक्तिना तानमां सर्व अत्मगगनमा उडता हना भक्ति रमजट पूर्ण थतां सर्वे देव देवोआ प्रभजाने वंदना करो पोतपोताना
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स्थाने चाल्या...केटलाय नंदीश्वर द्वीप गया...इंद्र महाराज प्रभुज ने लई तेनी माता पासे आव्या, प्रमुनीने मातानी गोदमां मूक्या अने प्रभुने तथा माताने नमस्कार करता बोले छ । विश्वना तारणहारनी प्राता, तुं जगतनी माता छु, आज तुं धन्य बनी छ । तारी रत्नकुक्षी दुनियानो उपकारक जन्मयो छे, अमने तेनी सेवानो लाभ आय्यो, अशं वर्वाद आप्या ने...प्रमुने रमवा मटे गेडी, दडो, वि. मूकीप्रमुना अंगुठे अमृत सोंचों पांव धावम ताने प्रभुना उछेर माटे मूको... केटलाक देवाने प्रभुनी रक्षा माटे मूश्या ....
नगरे नगरे उद्घोषणा करावीके जे प्रभु के प्रभुनी मातानो विवाद, अवर्णवाद करशे तेनुं मस्तक छेद थशे। आ प्रमाणे सर्व व्यवस्था, प्रभुना जन्म अवस्थाये करो इंद्र भावपूर्वक प्रभुने नमस्कार कर्यो...
आंखमा प्रतीना पाणी लई स्वर्ग सद्दन सीधाव्या... पुंडारकिणी नगरं नो अमूलो उत्सव प्रभुना जन्मोत्सवनो थई रहयो...जिन मंदिरो गाजी उठया। के दाने मुक्ति, पखोआने मुक्ति, दाननी वर्षा, स्वजन, परिजनमां पण भेटणां, नजराणां, तेमज उत्तम भोजन कराव्या, केटल य ज वोने अभय अपाया... प्रभुना जन्मदिननी खुशालीए चारे तरफ भरता उछला संसारना किनारा पर...
श्री सोमंधर कुमार चंद्रनी कलानी जेम उछेर पामवा लाग्या, व्रण-त्रण, ज्ञ नना वारसदारने दुनिया कयांयी अजाणी होय? समुद्र कयारेय गंभीरता न छोडे तेम तीर्थंकरो पण मर्यादा तोडा नयो। माता-पितानो आज्ञाने शिरोमय करे जाय छ
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च पांच धावमाताथी खेलाता राजकुमार....श्री सीमंधर कुमार बी बोलावना...इंद्रोए मर्यादा थी भक्ति भावना प्रगट कर्या एथी एमनु सिमंधर कुमार नाम सूचित थयु. दिवस अने रातकाळ चकनी चक्रीमांथो पसार थाय छ। श्री सिमंधर कुमारे बाळवस्थाने पराक्रम द्वारा, कुमार अवस्थाने ज्ञान द्वारा... यादगार बनावी दीधी। हवे प्रवेश थयो युवावस्थामा ..
जेम फागण लहेरे के सुडानु हास्य प्रगटी उडे, तेम सिमंधर कुमारना अंगे अंगे यौवन के पु हसी उठयो केसुरंग फाली रह्यो...
संपारकर्मना भोग्यपणा ने कारणे भावि अरिहंत छतां संसारमा जुकावं पडे छ। सर्वे तीर्थरो भोगमा उत्पन्न थाय छे. उपभाग-भागथो वद्धि पामे छे. तेज भोगथो कमलनी जेम अंग्थो अलिप्त रहे छे म ता-पिता मुंदरनार-गुणनी खाण रुकिमणो जोडे जीवन - सबंध बांधे छ। पांचसो घनुषनो पडछंद देह. सशक्त सुघड, सुवर्ण रंग, काय ....मनहर लावण्य....जोई रुक्मिणी पण जोवनने धन्य माने छ....संसार रथना बे चक्री
धारो गतिथो सप्तार मार्ग पर प्रशण करे छ र ज्यनी धुरा स थ जोवतनी धपधुराने पण संभाळे छे। सुख दुःखना विराट विहारमा नथी शोक नथ' गंज...ा छ प्रम अवतार ...कयांथी होय ए नळ ई !! ... पमपनो सरवाणा मिर्जरना वहेण समी वही प्राय छ। प्रभुना माता-पिना पण आ पुत्रने पुत्र-वधुनी, सुहागो-सुवासी जोडलो जोई आनंद पामे छ...
अ आनंद संपारनो किनारनो हतो...आत्मना ओवारनो भानंद अभय छे, ज्यारे संगारनी किनारनो आनंद क्षणीक छ ।
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भोग-उपभोगमा विहरतां छतां पिमंघर कुमारने मन भोग रोग जेवा लागे छ प्रोनीना बंधन लोखंडना शृंखला सम.न देखाय छे स्वां समान संपार असार जेल समान.... भासे छ।
ईन्द्रीय जन्य सुखने विषम विष समान निहाळे छ....
संसारनो मोह खोटो व्य मोह छ....भ्रम छ.. राजसंपत्ति विपत्तिना जननी छे.... समस्त दुन्यत्रो सुख दुःखनो अमावास्या छे..
दिलमां कोई शुमफळनो आश उठे छे...
आत्मशघिन माटे है, हरखी उठे छे.... संपार एने ऋरे समान थई पडयो छ.. संसारनी सर्व कायवाडी भाथाबोज जेवो लागे छ, बोजथो परिश्रमीत जोवन काई आराम इच्छे छ...तेज प्रमाणे सिमंधर कुमारनी मनोच्छा आराम... संथम, तरफ हळी पडो...
संसारना आवासमां वास करता छनां संसार तरफ निराश बन्या. धर्मपथने जीवननो पंथ बनावी परापकारने मुख्य मित्र बनाव्यो हतो.
कोईने सहाय.. कोई ने ज्ञान.. कोईने आश्वासन,...तो कोईने प्रेरणा... आ रीते जवन धाग वहेतो हतो. पोतानो अंतर उत्सुकता आत्मकल्याण-परकल्याण मार्गे जवानी छे ए बात एक आथमती संध्याए माता पिता समक्ष निमंधर कुमारे उच्चारी वात सांभळता ज माता-पिताओ धरतो कंप नो आंचको अनुभव्यो। समजु मानवी एक क्षण भर आघातना आंबकाने अनुभवे छे, खरा पण तुरजत ज्ञान प्रज्ञाथी तेने पचावी जाणे छे...
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संसारनी हर निवास करनार मानवीने संयमनो प्रवास केटलो दुष्कर छ... संयम फलनो सौरभ जेवू सुखकर नथो...पण रेतोना कणमांथो तेल काढश जेवं दुष्कर छ। सरल मार्ग नथी तेम धणी धणो यक्ति स थ द्रष्टांतपूर्वक धणी समजणपणे पण कुमार पोतानी भावनामा निश्चल रह्या ।
आ मिश्चनता जोई माता पिताओ थोडा समयनी राह पर राख्यं...कुम रे भार कमनो अपुर्णा समजो माता-पिता ए तीर्थकर ना अचार छ ज अने संयम रस्ते जव नो... समय तो जीवन' धपर सनकनो कुच नो जेम आगे कदम करी रहया... एक बार सिमंधर कुमारनी सभ मां अलख अंबार चमकता देहवळ सौंदर्य का स्थान जेवा लोकांतिक देवो प्रकट थया...
___ को जय जपकर जैर शासनो..अने सिमंधर कुमारनो... आ प्रमाणे शब्दोच्चार करता हता, श्री सिमंधर कुमारे तेनो सत्कार कर्यो। हे स्वामो ! आ संपार त्याज्य छ, संयम ग्राहय छ. आध, व्याधि, उगचिती धिमां सपडायेला विश्वने तमारो एक आध र छ। ए आं धयो बचावा माटे हे ! स्वयंबुद्ध ! अरिहंत प्रभु सपस्त विश्वने हितकार एवा तीर्थनी प्रवृत्ति करो... दर्द पर औषध, दुःख पर अश्वा 'न, नी आवश्यकता छे. धा पर मलम पटानी अने संतप्त धरती ने धारा धरनी आवश्यकता छ.।
प्रभुजोए पोतानो संग्ष समय जाणो वरसीदाननी महान वृतिने हाथधरी पृथ्वी पर ते दिनथाज धननो वृष्टि वरसी रही, देवो लावे धन, प्रभु दरसावे धनना दान, आ प्रमाणे सांवत्सरोक रान दे छ।
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प्रकरण-छर्छ -: संसार निष्क्रमण :
संसार त्याग करवानी सुफळ आवो गई.
एक वर्ष प्रमजीए व्रण अबज अठ्यासी करोड एसो लाख भहोरनुं दान दाधुं...
जगत्तना दारिद्रय दावानलने दानरूप मेघधारथी सोंची दूर कर्यो.. त्यार बाद इंद्र भगवाने प्रभुना व घोडानी तैयारी करवा लाग्या, इंद्राणीओ मीलने गीता गावा लागो. सौना नेत्रो भोजाणा प्रभुना त्याग पर... उत्सवनी रमजट पर... दीक्षा महोत्सवनो वरघोडो नोकल्यो...
शकेन्द्र ईशानेन्द्र चार धरोने... सनतकुपार छत्र धरीने ब्रह्मेन्द्र दर्पण धरीने, महेन्द्र खडग धराने लांतक इद्र लश धरीने, राकेन्दु स्वस्तिक धरोने, सहस्त्रार धनुष धरीने...प्राण तद्र श्रवत्म धरीने... अश्वतद्र नंदावर्त ग्रहण करने प्रभुनी अगे चालवा लाग्या, अने चमरेन्द्रादि देवा शस्त्र ध रण करीने वरघोडानो शोभा बनो गया...
प्रभु शीबोकामां बेठा छ... माथे मुगट बाजुवध कंठे हार, हाथे कंकण, अंगुलीमा वीटो, अने टीमा रत्नजडान भेवला.... शोभी रहया छ। मंगल तोरण' या घर घर जली रहया छ मंजुल मंडपो भागमां शोभी रहया नगरीमा सुगंधी जलनो
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छंटकाव अने सुरमी कुसुमोनी वष्टि वरसी रही। पंडरीकगीणी जाणे पूजाथी पवित्र थई हसी रही। प्रभुजी, स्वागत करवा।
विविध वांजोत्रोना नाद, निशान, ढोल, नोवत ना नादथी, बंदोजनोनी विरुदावलौना बोलथी वातावरण गुंजतुं बनी गयं आलण देवो पाछल साजन महाजन, प्रभुजीनी पालखी इंद्र अने देवो उपाडी ले छ...
हे प्रभु तारा पंथने देशबिरतीने ग्रहण करवाने असमर्थ छोए तो आ तन जे काची माटी नो पींड छ तेने तपथी नही पण तारी सेवाथी पवित्र करवा दे.
दीक्षानो वरघोडो चाल्यो...
प्रभुए सर्व आभरण-भूषणनो त्याग कर्यो, इंद्रे अभिषेक कर्यो...
हजारो पुरुषो साथे फागण सुद त्रीजनो उत्तम योगे तीरयासी लाख पूर्वनो धरवास छोडी...
संसारना फटक्या रंगो समान संबधो-सगपणो त्यागी दोधा। संयमना पंथे लागी गया...पंचमुष्टि लोच करी संयमी बनी गया।
सर्प कांचळी उतारे तेम संसारनो अंचलो फेंकी दीधो...
विशेष तो वरघोडो पसार थता त्यां प्रभुना रूपने नोरखवाने, प्रभुनी अलगारी प्रतिमाने नीहाळवा मानवोनी ठाठ जामती...
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अहो ! आ कोण, विष्णु के ब्रह्मा ! के शंकर कोणे
अवतारा... आते कोई रूप छे !
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...
अहो ! आज आंखडी अने, जीवन बाटडी एतो दर्शने धन्य बनी गई । आ सीमंधर कुमारे संसार नो त्याग कर्यो ? आ कोमल काय संयमनी कष्ट यातना कई रोते उठावशे...
फक्त एक कुसुम शुं । पहाडनो भार उठावी शकशे ? परंतु सोनो देखता सीमंधर कुमारे संसारथी निष्क्रमण करी दीधुं । ज्यां सुधी अरिहंतप्रभुनी केवल ज्ञान प्राप्ति यती नथी त्यां सुधी तेओ मौन-भाषी रहे छे...
दामदई ससारोपण मां प्रभु दाननुं महत्व बतावे छे. तेम संयम लई संयमनुं मुख्य अंग तपनुं महत्व बतावे छे. जे तप प्राणीना नीकाचीत कर्मने भेदी भवभ्रमणने छेदी... केवलज्ञाननी ज्योति प्राप्त करावे छे. तप, परिषह, उपसर्ग सहतो आत्मा स्वभावस्थ थाय छे. कर्मनी कठीनता अने कठोरताने भस्मीभूत करवाने संयम सपाटीपर प्रभुजीए तपयज्ञ आदर्यो. ध्यान, का उस्सा तेनी वेदिका बने छे.
प्रभुजीनो संयमदिन हतो फागण अजवाळी ब्रोज, प्रभुनी व्रण ज्ञानथी शोभीत हता छतां भवसंसार थी पार उतारनार संयमने प्राप्त करतां..
पंचेन्द्रिय जीवो ना मनोगत भावोने जणावमार चोथु मनः पर्यव ज्ञान प्राप्त थयुं...
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फागणनो केशुडो फाली रहे तेम आसमये भरतक्षेत्रमा मुनिसुव्रतस्वामी अने नमिनाथ प्रभुनो अंतरीत काळ हतो. ___तप ज्वालाथी अनादिकर्ममलने दूर करी धनधाती चारे कर्मोने भस्मीभूत करवा मांडया...आत्माना सुक्ष्मचितवन अने शुभ अध्यवसाय रूप शुक्लध्यानथकी प्रभु सीमंधर स्वामी पंचज्ञानना मालोक बनी गया. जीवननो तमस्कार भेदाई गयो अजवाळानी हेली वरसी.
हवे प्रभुजीने दुनियानो कोई पदार्थ, कोई प्राणी, कोई काळ के कोई भाव अजाण नथी ?
पीछाण थई गई समस्त लोक अलोकनी देवदुंदुभी गडगडी रही गगनमा...
शांत थया नरकावासना नारको क्षणभर . देवेन्द्रो आवी रहया अबनीना आंगण पर...प्रभुजीना ज्ञानपूंजने सत्कारवा, बहुमानथी.. कारण प्रभुजीना पुण्यरुपी दुतीए सुरलोकना सुधोषा घंटा वजावी इशानेन्द्रन सिंहासन चलायमान थतां इंद्रे उपयोग मुक्यो ज्ञाननो अने अत्यंत प्रमोदरस अने भक्ति परवश बनी तिवना करी
अंते प्रभुजीनी सेवामां हाजर थयो. चोसठ इंद्रोए प्रभुजीने नमस्कार कर्यो.
वायुकुमारे एक योजन प्रमाण भूमि कंटक कंकर दूर करी, समान सपाटोमय बनावी दोधा...
मेघकुमारे सुगंधी जल सींच्यु.
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अग्निकुमारे उत्सम सुवासित धूप पेटाव्यो व्यंतरनिकायना देवोए रूपानो गढ सुवर्णना कांगरा...
ज्योतिषी देवोए कनकनो गठ स्फटिकनां कांगरा.
वमानिक सुरवरोए स्फटिकनो गढ अने मणिभाणेकना कांगरा बनाव्या. देवच्छंदक, तथा चार दरवाजा, दरवाजे दरवाजे तोरणो कमल युक्त वावडी, सोपान श्रेणि, तेमज प्रभुजी थी बारगणुं उचं अशोकवृक्ष, ढीचण प्रमाण पंचरंगी सुवासित कुसुमोनी वृष्टि करी, दिव्य ध्वनि, चामर, आसन, भामंडल, त्रणछत्र, दुंदुभी आम समवसरण अने अष्ट प्रातिहार्यनी देवोए रचना करी...
इंद्रध्वज, नवकमलो, विगेरे अद्वितीय शोभा बनो गया. आथी लोकोत्तर तीर्थंकर नामकर्मनो पुनित प्रभाव जगमा विस्तर्यो.
प्रभुजीए समवसरणमा पूर्व द्वारथी प्रवेश करी त्रण प्रदक्षिणा बोधी अशोक वृक्षने...
__ 'नमो तीथ्थस्स' पदद्वारा नमस्कार करो श्री सोमंधर परमात्मा सिंहासन पर आरुढ पया. त्रण दिशामांत्रण बिबोनी स्थापना देवोए करी....
प्रभजीए चतुर्मुखथी कर्मसंताप अने भवतापने हरनारी शीतल, अमृतसमान वाणीनोधीध बरसाव्यो...
वाणीना धोधथी बोधपामी भवसंसार निरोध करवा केटलाए प्राणीए प्रभनो मार्ग स्वीकार्यो...
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विश्वना प्राणीना उपकार ने माटे प्रभुए चतुर्विध संघनी स्थापना करी...साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, त्रीपदीने प्रभुजी संभलावे छे अने गणधरो सूत्रमा गुंथन करे छे.
प्रभुजीने ज्यारथी केवलज्ञान उत्पन्न थाय छे त्यारथी प्रभुजी ज्यां ज्यां विचरे त्यां सवासो योजन सुधी कोई, उपद्रव, रोग, भय, इति, इलति होता नथी, आवेला रोग उपद्रवोशांत थाय छेनवा एक वरससुधी आवता नथी...षट् ऋतुओसमकाले फले छे. वृक्षी नमो नमीने प्रभजीने प्रणाम करे छे.
पंखीओ प्रदक्षिणा दे छे. आछे प्रभुजीना अतिशयीनो चमत्कार ! चैत्रसुद त्रयोदशी प्रभुजीना ज्ञानदीपकनी यादी बनी गई...
प्रभजीनी वाणी केवी अद्भुत ! ...मालकोशराग मयने सांभळतांज विषधरोना विष उत्तरी जाय...
शत्रुओनो केफ दूर थाय...
प्राणोनी भूख अने तृषा सो गाउ दूरे चाली जाय। पेला सिंह अने हस्ति भाई भाई बनीने आवे ।...
श्रमवाळानो श्रम दूर थइ जाय विना बोज उतारे अने हळ्वो फुल बनी जाय...
जे बाणीमां समताना सागर भर्या छे... जे वाणीमां क्षमानी गागर छलके छे... जे वाणीमां अमृतना रसकुंपा छे...
जैमां चंदनशी शीतलता...वारी शी निर्मळता-समीर शी गुंजन छे...
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मुखमां थी वाणी नोकळे ने जाणे फुलडां खरे...
एकज शब्द, मानव, देव, दानव, अने पशु-पंखीगख १२ पर्षदा...पोत पोतानी भाषामां समजी जाय...
जे घाणीमां आत्मा अने जडनुं तत्त्व छे. ज्ञानदेनार... अज्ञान दूरकरनार भवभ्रमणने भांगनार छ ए वाणीना जादुथी हजारो भव्यो प्रमपंथे संचर्या...आ प्रमाणे वाणीनी बर्षा वरसावतां प्रभुजी सीमंधरस्वामी पृथ्वीतलने पावन करे छे...
भव्य कमलोने प्रकाश द्वारा विकास करावे छे...अने परहित करतां प्रभुजी पश्चिम महाविदेहनी भूमि पर कर्मयज्ञ जलावी ध्यान-ज्ञाननी आहता द्वारा आत्मानी ज्योति जगावे छे...
जेनी सेवामा हजारो देव देवेन्द्रो हजुर छे...जेना १००८ उत्तम लक्षणो छ, ३४ अतिशयो...३५ गुण वाणीना छे, जेनी कंचनवरणी काया छे...१२ गुणोथी युक्त छे...
तरणतारण जहाज सरीखा, महागोप, महा माहण, महा निर्यामक अने महासार्थवाह एषा अनेक बिरुदो धरावनार... सूर्यसमान प्रभुजी भव्योपकार करता ८४ लाख पूर्व- आयु पूर्ण करी...चार कर्म जलावी...पृथ्धुत्वैकत्ववत्वैकत्व आदि ध्यानांतरथी भव जंजाल तोडी श्रावणसुद तृतीया दिने भरतक्षेत्रना आवती चोवीशीना उदय अने पेढाल प्रभुजीना अंतरकालमां सिद्यिवधूनी साथे प्राणिग्रहण करशे...
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श्री सीमंधर प्रभुजीनो परिवार
सो क्रोड साधु, सो क्रोड साध्वी जाण ऐसे परिवारे, सीमंधर भगवान.
चोराशी गणधर, दशलाख केवळीसार ग्रह उठी बंदु नित्य नित्य वारहजार.
शुभ भवतु
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महामहिमाशाली
सीमंधर प्रभुनो जाप
तथा
आराधना
(लाख नाप अथवा साटोबार हजारनो जाप करवानी विधि)
आ भरते पण कोइ जीव, सुलभबोधि जे. जाप जपे प्रभु नामनो, लाख संख्याए तेह.
भवस्थिति निर्णय तसु हुए, अथवा ध्यान पसाये. उपजी विदेह केवळ लहे, नवमे वरस उच्छाह
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श्री सीमंधर स्वामिना जापथी थता महान लाभ
परमोपकारक, परमतारक, परमसुश्रध्येय, परमसुगहित नामधेय, अचिन्त्य महामहिमाशाळी, विश्ववंदनीय त्रिलोकेश, जगद्वत्सल, देवाधिदेव श्री सीमंधरस्वामीनू परमोत्कृष्ट भावे आराधन करनार श्री तीर्थकर नामकर्मनो बन्ध करी शके छे.
परम तारकश्रीना मंत्रोनो (१,००,०००) एक लाख जाप करनारनी भवस्थितिनो निर्णय थाय छे. अथवा श्री महाविदेहमां उत्पन्न थइने अष्टम वर्षे चारित्रवान थइ नवमा वर्षे केवळज्ञानो बनो शाश्वता धामने प्राप्त करी शके छे. (परंतु जाप शुभ भावथो एकाग्रचित्ते थवो जाइए.)
. आवा अपूर्व महामहिमशाळो परमतारक देवाधिदेवश्रीन आराधन एवं उत्तम भावपूर्वकनु हो जोइए के साडात्रण करोड रोमराजीमां आत्माना असंख्य प्रदेशोमाथी परम तारक श्री सोमंधर, सोमंधर नामनो ना नोकळतो जोइए.
परम पुनित अमृताराधनमा ध्यानराखवा योग्य खास
सूचनाओ
__ सामुदायिक अत्यल्लासपूर्वक आराधन, लणे दिन आरंभ समारंभ सर्वथा त्याग, मुख्यतामां उपवास अगर आयंबिल तप,
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आ तपनी अनुकुळ्ता न होय तो, चार वस्तु (द्रव्य)नु एकातj, जळ, रोटली, भगनी दाळ. अने दुधथी करवं. लीला शाक भाजी, अने फळोनो त्रणे दिवस सर्वथा त्याग, अणिशुद्ध अखंड, ब्रह्मचर्य- पालन, विकथानो सर्व त्याग, परमतारकरीना ध्याननी निरंतर रमणता, वण दिनमां शकय प्रयत्ने परमतारकश्रीना मंत्रनो २५००० जाप करवो, अने कममां कम एक लाख, (१,००,०००) जाप पूर्ण न थाय त्यां सुघो प्रतिदिन कममां कममां पांच (५) नवकारवाळी अवश्य गणवी, तत्पश्चात्, प्रतिदिन कर्ममां कम एक (१) जपमाला अवश्य गणवो, मंत्र जापन प्रतिदिन माटे एक ज स्थान राखवू, एक स्थाननी अनुकुळता न होय तो बे-त्रण स्थान नियत राखधा, वस्त्रो श्वेत, शुद्ध, पवित्र राखबा, आसन श्वेत, जपमालिका स्फटीकनी, शुद्ध श्वेत सूतरनी गूंथेल, अगर शुद्ध सुखडनी प्रतिष्ठित राखवी। जापनो समय दिवसमां बे-त्रणवार नियत राखवो। आराधन अने जाप समये दिवसे पूर्व दिशा सन्मुख बेस. इशान खुणा सन्मुख अनुकुळता होय तो ते प्रमाणे करवू, वस्त्रो, आसन, जपमालिका एक ज राखवा, परमतारकरीना प्रतिमाजी होय तो तेनी स्थापना वण नवकार महामंत्र गणीने करवी, ते न होय तो अन्य कोई पण परमतारक श्रीना प्रतिमाजी स्थापन करवा ।
प्रतिमाजी स्थापन करता पहेला मंत्रथी भूमि वस्त्रावि मंत्रीत करवा, श्री कुंम अने अखंड दीपकनी स्थापना करवी।
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प
"
निम्ननोकत मंत्र एकेक वार बोली दक्षिणावेत वासक्षेपथी भूमि शुद्धि करवो। एम व्रण वार करतुं । ____ “ॐ भूरिसि भूतधात्रि सर्वभूतहिते भूभिशुद्धिं कुरु कुरु स्वाहा"
-: शरीर शुद्धि मंत्र :"ॐ अमले विमले सर्वतीर्थजले पां पां वां वां अशुचिः शुचिर्भवामी स्वाहा"
आ मंत्र बोलता अंजलिमा सर्वतीर्थोनुं जळ छे. एवं संकल्पोने मस्तकयो पाना तळीया पर्यन्त स्थानथी पवित्र थाउं छु एवो संकल्प करवो।
-: वस्त्र शुद्धि मंत्र :
"ॐ ह्रीं घोंघों पां पां वस्त्रशुद्धिं कुरु कुरु स्वाहा, सूचना:-ज्यारे पग जाप चालु करो त्यारे त्यारे उपर लख्या
प्रमाणे भूमिशुद्धि अने वस्त्रशुद्धि कर्या बाद जाप चालु करवो.
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श्री कुंभस्थापन विधि
पवित्रतम कुंभने गेवा सूत्र (नाडा छडी) बांधीने "ॐ ह्रीं श्रीं सर्वोपद्रव नाशय नाशय स्वाहा" ए मंत्र लखीने चंदनन स्वस्तिक कळशमां आलेखी सवा रूपियो पंचरत्ननो पोटली एक (१), अने जळयो शुद्ध करेली सोपारी पांच (५), पधरावी वण श्री नवकार महामंत्र गणवा पूर्वक श्री बृहत्शान्ति बोलता कळश भराववो. कळश उपर चार पान, श्रीफळ, रंगीन रेश्मी घस्त्र, मोंढळ, भरडाशींग बाँधो सुगंधी पुष्पनो हार पहेराववानो, ज्यां श्री कुंभ स्थापन करवो होय त्यां प्रथम चंदरवो बंधाववो । श्री कुंभ भरनार कुमारिका अगर सौभाग्यवती बहेन पासे कंकुनो स्वस्तिक करावी सवाशेर जब अगर डाँगरनो स्वस्तिक करावी, सोपारी मूकावी, श्री नवकार महामंत्र गणवा पूर्वक परमतारक श्रीना प्रतिमाजीने त्रण प्रदक्षिणा देवरावी, श्री कुंभने वाजते गाजते "ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा" ए मंत्र सात वार गणी श्वास स्थिर करी, स्वस्तिक उपर स्थापवो। प. पूज्य. गुरुमहाराजश्री पासे उपरोक्त मंत्र गणवा पूर्वक वासक्षेप कराववो। श्री कुंमने स्थानके बाजुमां अखंड दोपक स्थापवो, व्रण टंक धूप करवो,. निम्नोकत काव्य बोलवा पूर्वक व्रण यार कुसुमांजलीथी कुंने व्रग वार वधाववो।
पूर्ण येन सुमेरुशृंगसदृशं, चैत्य सुदेदीप्पते, यः कीति यजमान-धर्मकथन, प्रस्फूजिता भाषते ; यः स्पर्धा कुरुते जगत्त्रय महादियेन दोषारीना, सोऽयं मंगल-रूप-मुख्य-गणनः कुंभश्चिरं नंबतात् ।
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३
विकाळ सौभाग्यवती स्त्री पासे गहुंली कराववी, मार्जार (बिलाडी) प्रमुख हिंसक प्राणीने आववा देवा नही। रजस्वला प्रमुख मलिन स्त्रीनी दष्टि पडवा न देवी। कुमारी सौभाग्यवती पासे धबळ मंगळ गीत गवराववा, व्रण, टंक सात स्मरणो गणवां।
प्रातःकाले अने मध्यान्हकाले श्री नवकार मंत्र, उवसग्गहरं, संतिकरं, तिजयपहुत, अजित्तशान्ति, भकतामर अने बृहच्छान्ति सायंकाले "विजयपहुत" ने बदले " नभिउण" गणवं.
इति कुंभस्थापन विधि
अथ श्री दीप स्थापन विधि , धृत सवा शेर धृत रही शके तेवू जोभवाळू ताम्रदीपपात्र, शुद्ध करी, धूपी, कंकुथी पूजी, कुसुमांजली अने अक्षतथी वधावी सवा रूपियो, पंचरत्ननो पोटली अने सोपारी मूकी मोंढळ, मरडाशींगो बांधी, १०८ अथवा २७ तारनी दीवेट धत मंत्र वणवार भणीने सौभाग्यवती स्त्री पासे धृत पुरावयूँ ।
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-: धृत मंत्र :"ॐ धृतमायुर्वद्धिकरं, भवति परं जैन दष्टिसम्पर्कात् । तत्संयुक्तः प्रदीपः पातु सदा भावदुखेभ्यः स्वाहा ॥" श्री दीप प्रगटाववानो मंत्र वणवार भणी दीप प्रगटाववो ।
-: श्री दीप प्रगटाववानो मंत्र :"ॐ अहँ पंच-ज्ञान महाज्योतिर्मयोऽयं ध्वान्तघातने । द्योतनाय प्रतिमाया, दीयो भूयात् सदाऽर्हतः ॥"
श्री कुंभनी जमणी बाजुए ज्यां श्री दीपने स्थापन करवाना स्थाने कंकुनो स्वस्तिक करी उपर भीजावेल माटीनुं स्थान करी, ते उपर दीप स्थापन करावी निम्नोकत मंत्र वणवार भणी पू. गुरुमहाराजश्री पासे वासक्षेप कराववो ।
-: श्री अग्नि शुद्धि मंत्र :"ॐ अग्नयोऽग्निकाया एकेन्द्रिया जीवा निरवद्याईत्पूजायां निर्व्यथाः संतु, निष्पापाः संतु, सदगतयः संतु, न मे संघट्टनहिंसाईदर्चने"
इति श्री दीप स्थापन विधि
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॥ श्रीकुंभ विसर्जन विधि ॥
"ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा"
श्री कुंभ पासे जईने उपरोक्त मंत्रोच्चार करवो ।
॥ श्री अखंडदीपक विसर्जन विधि ॥ "ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा"
श्री अखंड दीपक पासे जईने उपरोक्त प्रमाणे मंत्रोच्चार करवो।
धी चैत्यवंदनादि सामुहिक क्रिया परमतारक श्री सन्मुख परम पूज्य गुरुमहाराजश्रीनो परम पुनित पुण्ययोग होय तो तेओश्रीनो परम पुनित पुण्य निश्रामां करवी, अन्यथा व्रतधारक सुश्रावक करावे ।
चतुर्थ दिने अत्युल्लासपूर्वक, उच्चत्तम फळ नैवेद्यादि सामग्रीपूर्वक, परमतारक श्री विश विहर माननी पूजा भणाववो । अगर श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी पंचकल्याणक पूजा भणाववी ।
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॥ आराधन विधि-क्रम ॥ १. परमतारक श्रीनी स्तुति
२. सामुदायिक श्री चंत्यवंदन
३. प्रण टंक देववंदन
४. बे टंक प्रतिक्रमण
५. द्वादश स्वस्तिक ६. दहा बोलवा पूर्वक प्रदक्षिणा पूर्वक द्वादश: (१२)
खमासमण
७. द्वादश (१२) संपूर्ण लोगस्समो काउस्सग
८. व्रण उपवास, व्रण आयंबिल अगर वण एकासणा
९. "ॐ ह्रीं श्रीं अहं श्री सीमंधरस्वामीने नमः आ
जापनी नवकारवाली गणवी"
१०. आयंबिल, एकासण कर्या पछी चैत्यवंदन ११. ज्यारे ज्यारे मंत्रजापनो प्रारंभ करवो होय त्यारे
पहेला, "श्री तीर्थकर-गणधर-प्रसादाद एष योगः फलतु " एटलु बोलवं.
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१२. सामुहिक श्री स्नान पूजन तेम ज अष्टप्रकारी पूजन
___ करवं.
सूचना :-सामुदायिक आराधना थवानो अभाव होय तो एकेला पण आराधना करी शकाय छे. एकला घरे उपाश्रये के मंदिरमा जाप करवो होय त्यारे दीप के कुंभस्थापन विना पण करी शकाय. अने घरे जाप करतां सन्मुख श्री सिमंधर स्वामीनो फोटो सन्मूख राखबो.
प्रदक्षिणामां वोलवानो दुहो... महाविदेहमां सीमंधरस्वामी, नित्य वंदु प्रमात. विकरण त्रिहुं योगशुं, ज' अहोनिश जाप.
आ दुहो बोली श्री सीमंधर स्वामीने नमः कही खमासमण देवं.
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॥ श्री सीमंधर जिन सन्मुख बोलवानी स्तुति ॥
जय स्वामिन् ! जिनाधीश ! जय देव जगत्प्रभो! । जय लोकय-तिलक ! जय संसारतारण ! ॥
जय जंगमकल्पद्रो! जयाहत ! परमेश्वर ! । जय परमेष्ठिन् ! जयानन्दिन् ! जय व्यक्त-निरंजन ! ॥
स्वामीनामपि यः स्वामी गुरुणामपि यो गुरुः । देवानामपि यो देवस्तस्मै तुभ्यं नमो नमः ।।
जगमन्तुनिस्तारणे यानपात्रं,
समाराम-विश्राम-संलीनचित्तम् । नतानेक-नाकेन्द्र-पादारविन्दं,
स्तुवे स्वामि-सीमंधरं देवदेवम् ।।
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॥ श्री सीमंधरजिन चैत्यवंदन ॥
श्री सीमंधर जगधणी, आ भरते आवो, करुणावंत करुणाकरो, अमने वंदावो.
॥१॥
सकल भक्त तुमे धणो, जो होवे अभ नाथ, भवोभव हुं छु ताहरो, नहि मेलु हवे साथ. ॥२॥ सयल संग छंडी करी, चारित्र लाशं, पाय तुमारा सेवीने, शिवरमणी वरशुं. ए अलजो मुजने धणो, पूरो सोमंधदेव, इहां थको हुं विनवू, अवधारो मुज सेव. ।।४।। कर जोडीने विनवू, सामो रही इशान. भाव जिनेश्वर भाणने, देजो समकित दामः ॥ ५ ॥
(२) श्री सीमंधर वीतराग, त्रिभुवन तमे उपगारी. श्री श्रेयांस पिताकुले, बहु शोभा तुमारी. धन धन माता सत्यकी, जेणे जायो जयकारी. वृषभ लंछन विराजमान, वंदे नरनारी.
॥१॥
॥२॥
धनुष पांचशे देहडी, सोहीए सोवन वान. कोति विजय उवज्झायनो, विनयधरे तुम ध्यान. ।। ३ ।।
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सीमंधर जिन विचरता, सोहे विजय मोझार. समवसरण रचे देवता, बेसे पर्षदा बार.
॥१॥
नवतत्त्वनी दीये देशना, सांभळी सूरनर कोड. षट् द्रव्यादिक वर्णवे, ले समकित करजोड.. ॥२॥
इहां थको जिन वेगळा, सहन तेत्रिश शत एक. सत्तावन जोजनवळी, सत्तर कळा सुविशेष. ॥३॥
द्रव्यथकी जिन वेगळा, भावथो हृदय मोझार. बिहुकाळे वंदन करूं, श्वासमांहे सोवार.
श्री सिमंधर जिनवरुऐ, पूरे वांछित कोड. कान्ति विजय गुरु प्रणमतां, भक्ते थे करजोड.॥ ५॥
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॥ श्री सीमंधर जिन स्तवन ॥ . (राग :-मन मोहयुं तुंगौथापुर मगर सोहामणुंजी) सरस्वती सिद्धि बुद्ध विनवू जो, स्वामी ! तमे छो त्रिभुवननाथ जो, प्रभाते उठी तमने वांदोए जी स्वामी ! वेगे वेगे दोयो धर्मलाभ जो, स्वामी सोमंधर मुजने मेळवोजी. स्वामी
दिवस दोह्यलो स्वामी हुँ रहयो जी, मारे नयणे जोयुं नवि जाय जो, शुं कर सीमंधरस्वामी वेगळा वस्याजी, हारे हं तो पांख विना रहयो निरधार जो. स्वामी०
राग ने द्वषे स्वामी हुँ भयों जी, मुजने नडीओ नडीओ क्रोध कषाय जो, माया ने लोभे स्वामी हुँ भर्योजी, मारी गुंज रही मनमांही जो.
स्वामी
मात ने बाप बांध व कारमाजी, कारमा कुटुम्ब परिवार जो, आशा विलुद्ध स्वामी हुँ रह्यो जी, मारी काइए न कीधी सारजो...
स्वामि०
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६२
बेकर जोडी स्वामी विनवुं जी,
हुं तो मागं मागं चरणनी सेव जो,
हां रे हु तो मागुं मुक्तिमां वास जो,
हां रे हुं तो कदीए न आवुं गर्भवास जो. स्वामी सीमंधर मुजने मेळवोजो.
(२)
सुणो चंदाजी ! सोमंधर परमातम पासे जाजो, मुज विनतडी ! प्रेम धरीने एणी परे तुमे संभळाव जो,
जेवणभुवननो नायक छ, जस चोसठ इन्द्रो पायक छे. नाण दर्शन जेहने क्षायक छे
जेनी कंचनवरणी काया छे, जस धोरी लंछन पाया छे. पुंडरीगिणी नगरीनो राया छे.
.
चार पर्षदा मांही बिराजे छे, जस चोत्रिश अतिशय छाजे छे. गुण पांत्रिश वाणीए गाजे छे.
भविजनने जे पडी बोहे छे, तुम अधिक शीतळ गुण सोहे छे. रूप देखी मविजन मोहे छे.
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सुणो०
सुणो०
सुणो•
सुणो०
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तुम सेवा करवा रसियो छु, पण भरतमां दूर वसीयो छु.
महा मोहराय कर फसियो छु..
सुणो.
पण साहिब चित्तमां धरीओ छ, तुम आणा खडग कर ग्रहीयो छे.. तो कांइक मुजथी डरीओ छे.
सुणो०
जिन उत्तम पूंठ हवे पूरो, कहे पद्मविजय थाउं सूरो.
तो वाधे मुजमन अति नरो.
सुणो०
॥ सीमंधर जिन थोय ॥ सोमंधरस्वामी मोरा रे, हुं तो ध्यान धरूं छु तोरा रे. राणी रूक्ष्मणीना भरथार रे, मन वंछित फल दातार रे. ॥१॥
विश विहरमान जिन नामे रे, विशने करुं प्रणाम रे. जेनं दर्शन आनंदकारी रे, तेने पाय नमे नरनारी रे.
॥२॥
गणधरने विपदी दोधो रे, सिद्धांतनी रचना कीधी रे. एनो अर्थ अनुपम लहीए रे, सुगुरुने वचने रहीए रे.
॥३॥
देवो चक्केश्वरी सानिध्यकारी रे, तेणे पाय नमे नरनारी रे. ए तो थोय रची छे सारी रे, एवा कनक सोभागो जयकारी रे.
॥४
॥
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६४
(२)
मुज आंगण सुरतरु उगीयो, कामधेनु चितामणी पुगीयो. सीमंधरस्वामी जो मीले, तो मनह मनोरथ सवि फळे.
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हुं वंदु विशे विहरमान, ते केवलज्ञानी युगप्रधान सीमंधरस्वामी गुणनिधान, जेने जित्या कोह, लोह,
सुख
क
आंबावन समरे कोकिला, मेहने वंछे जिम मोरला.
मधुकर मालती परिमल रमे, तिम आगने मारुं मन रमे ।। ३ ।।
जय लच्छी शासन देवता, रत्नव्य गुण जे साधता.
विमल
पामे ते सदा, सीमंधर जिन प्रणतुं मु.
मोह मान. ।। २ ।।
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।। ४ ।
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★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
श्री सीमंधर स्वामीजी
लघु स्तवनावली
द्वितिय खंड
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-: श्री सीमंधर स्वामीना चैत्यवंदनो :
(१)
सीमंधर जिन विचरता, सोहे विजय मोझार, समवसरण रचे देवता, बेसे पर्षदा बार.
नवतत्त्वन दीये देशना, सांभली सुरनर कोड़, षट द्रव्यादिक वर्णवे, ले समकित करजोड़.
इहाथ की जिन वेगला, सहस्त्र तेवीसशत ऐक, सत्तावन जोजनवली, सत्तर कला सुविशेष.
द्रव्यथको जिन वेगला, भावथो हृदय मोझार, त्रिकाले वंदन करूं, श्वासमाहे सो वार.
श्री सीमंधर जिनवरूऐ, पूरे वांछीत कोड़, कान्तिविजयगुरू प्रणमवां, भक्तिबे करजोड़.
(२)
जयतु जिन जगदेकभानु, काम कश्मल तमहरम, दुरित ओघ विभाववर्जित, नौमि श्री जिनमन्धरम. प्रभुपाद पदमे चित्त लयनो, विषय दोलित निर्भरम, संसार राग असार घातिक, नौमि श्री जिनमन्धरमः
अतिरोग वह्निमान महीधर, तृष्णा जलधि हितकरम, वंचनोजित जन्तुबोधक, नौमि श्री जिनमन्धरम.
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॥ २ ॥
11 3 11
118 11
॥ ५ ॥
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॥ २ ॥
॥ ३ ॥
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२
अज्ञान तजित रहीत चरणं, परगुणो मे मत्सरम, अरति अदित चरण शरणं, नौमि श्री जिनमन्धरम.
॥४॥
गंभीर वदनं भवतु दिन दिन, देही मे प्रभु दर्शनम, भावविजयश्री ददतु मंगल, नौमी श्री जिनमन्धरम.
॥५॥
---: श्री विश विहरमान जिन चैत्यवंदन :
सोमंधर युगमंधर प्रभु, वाहु सुबाहु चार, जम्बूद्विपना विदेहमां, विचरे जगदाधार.
॥१
॥
॥२॥
सुजातसाहेब ने स्वयंप्रभ, ऋषभानन गुणमाल, अनंतविर्यने सुरप्रभ, दशमा देव विशाल. वज्रधर चन्द्रानन नमु, धातकोखंड मोझार, अष्ट कर्म निवारवा, वन्दु वार हजार. चन्द्रवाहु ने भुजंगप्रभु, नमी इश्वर वीरसेन, महाभद्रने देवजसा, अजितवीर्य नामेन.
॥४
॥
आठे पुष्करार्ध मा, अष्टमी गति दातार, विजय अडनव चऊविशमि, पण विशमी कीरतार.
॥५॥
नगनायक जगदीश्वरू ऐ, जगवंध व हितकार, विहरमानने वंदता, जीव लहे भवपार.
॥६॥
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mr
३
(४)
पहेला जिनवर विहरमान, श्री सीमंधर स्वामी, युगमंधर विजा नमु, मुज अंतरजामी.
वीजा बाहु जिनेश्वरू, प्रणमु भगवंत, चोथा जिन श्री सुबाहु, वंदु वली जुगंत.
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श्री सुजात पंचम जिन ऐ, छट्टा स्वयंप्रभ स्वामी, ऋषभानन जिन सातमा, हु प्रणमु शिरनामी.
अनंतवीर्य जिन आठमा सूरप्रभ छ नवमा, छे श्री विशाल वशमाजिणंद, जस मोटो महिमा.
श्री वज्रधर इग्यारमा, बारमा चन्द्रानन, चंद्रबाह जिन तेरमा, जसवर्णो कंचन.
भुजंगस्वामी जिन चवदमा, बंदु उलट आण श्री इश्वरजिनपनरमा, नमीये नीत्य सुविहाण.
नेमीप्रभु जिन सोलमा, सुखदायक जेह, सत्तरमा श्री वीरसेन, वंदु धरी नेह.
महाभद्र अठारमा, देवजशा उगणीश, अजितवियं जिन विशमा, ज्ञान विमल सूरीश.
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॥ २ ॥
॥ ३ ॥
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।। ५ ।।
॥ ६ ॥
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॥ ८ ॥
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स्तुती विभाग
(राग - शत्रुंजय मंडण )
(१)
अजवाली वीजे चंदा तुं अवधार, विनतड़ी मारी जय विदेह मोझार; प्रणम सीमंधर मुज दुरीत करजोड़, नमता प्रभुजी नित पहोचे वंछित कोड़
उत्कृष्टे काले सितेरसो जगनाथ, उपजे महीमंडल मुगतीपुरीनो साथ ; तिहा केवलज्ञान केवनदर्शन अनंत, समरो भावे भवि जिम पामो भव अंत.
अढीद्विप माहे पंचविदेह प्रधान, विचरे तिहा प्रतिदीन विशविहरमान; अतिशे गुणवंता दे भवियण उपदेश, तस वाणी सुणतां सांसो नही लवलेश.
शाशनहीतकारी समकित दृष्टि देव, से सानिध्य कीजे श्री संघनित प्रतिमेव; श्री विजयगच्छनायक सागरज्ञानसुरिद, पद पंकज प्रणमुं अहनिश वीर जिणंव.
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॥२॥
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॥ ४ ॥
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(२) (राग--शबुंजय मंडन ऋषभ जिणंददयाल) श्री सीमंधर जिनवर सुखवर साहीबदेव, अरिहंत सकलनी भाव धरी करूंसेव; सकलागमपारग गणधर भाखीत वाणी, जयवंती आणा ज्ञान विमलगुणखाणी. ॥१॥
सो क्रोड़ साधु साध्वी सो क्रोड जाण, ऐसे परिवार सीमंधर भगवान; दशलाख थया केवली प्रभुजीनो परिवार, वाचक यश वन्दे नित्य नित्य बारहजार. ॥१॥
स्तवन विभाग (अमन्तवीरज अरिहंत)
(१) पूर्वविदेह पुष्कलावती जयो जगपतीऐ, श्री सीमंधर स्वामी ! प्रहसमे नित्य नमुए
॥१
॥
जगत्त्रयभाव प्रकाशता, भवि प्रतिबोधताऐ, उपकारी अरिहंत, प्रह समे नित्य नमुऐ.
॥२
॥
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धन्य नयरी धन्यते नरा, धन्यते धराने, विचरे जिहा श्री जिनराज, प्रहसमे नित्य नमुऐ
॥४॥
धन्य दिवश धन्यते घड़ी, देखसु आखड़ीऐ, भक्तवत्सल भगवंत, प्रह समे नत्य नमुऐ माहेर नजर अवधारजो, पतित उगारजोऐ, जिन हर्ष गणेश सनेह, प्रह समे नित्य नमुए.
॥५॥
(ऋषभ जिणंदशु प्रोतड़ो-ऐ देशी)
(२)
श्री "सीमंधर" साहीबा सुणो संप्रतिहो भरत क्षेत्रनी बातके, अरिहा केवली कोनही, केने कहीये हो मनना मवदातके.
श्री सोमंधर. ॥१॥
झाझं कहेता जुगतुं नहीं, तुम सोहे हो जग केवलनाणके, मुंख्या भोजन मांगता, आवे उलट हो अवसरना जाणके.
श्री सीमंधर० ॥२॥
कहेशो तुमे जुगता नही, जुगताने होवली तारे साईके, योग्य जननु कहेवृकिस्य, भावहीनने हो तारो ग्रही वाहीके.
श्री सीमंधर० ॥३॥
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योड़ ही अवसरे आपोये, घणं नो हो प्रभु छिपछे बातके, पगले पगले पार पामीये, पछी लहीये हो सधला अवदातके.
श्री सीमंधर० ॥४॥
मोडं वहेलू तमे आपशो, वीजानो हो हुं न करू संगके, श्री 'धीरवीमल' गुरू शिष्यणो, राखीजे हो प्रभु अविचल रंगके.
श्री सीमंधर० ॥५॥
(३)
(राग- अजित जिणंदरों प्रोतड़ी-- ऐ देशी) श्री सीमंधर साहीषा, विनतड़ी हो सुणीये किरतारके, ते दोवश लेखे लागसे, जिण दिवशे हो लईशु विदारके.
श्री सीमंधर साहीवा० ॥१॥
हेजाल हेयू उल्लासे, पण नयणे हो निरख्ये सुखथायके, जे जलपाना पिपासी ओ, तस दुख हो करी तृप्ती न थायके.
श्री सीमंधर साहीबा० ॥२॥
जाणो छो प्रभु बहुपरे, मारा मननी हो वीतकनी बातके, तो शु ताणो छो घणु, आवो मीली हो मुज थई साक्षातके.
श्री सीमंधर साहीबा० ॥३॥
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हु उत्सुक बहु परे कहुं, पण न गणु हो काँई रीझ अरीझके, ऐलक्षण रागो तणो, तिणे भाख्यु हो सघलू मनगुजके
श्री सीमंधर साहीवा० ॥४॥
"ज्ञानविमल" प्रभु आपणो, जाणीने हो कीजे उच्छाहके, उत्तम आप अधिक करे, आवी मल्या हो ग्रह्या जे बाह्यके.
श्री सीमंधर साहीबा० ॥५॥
(४)
सीमंधरजीकुं वंदना, नित होयजे हमारी रे, मन बचन काया वीके करी, सेवा चाहुं तुमारी रे. सी० ॥१॥
तुमे तो विदेह मा जई वस्या, हम भरत मा बेठे रे, मनडु चाहे इण घड़ी, जई किम पद भेटे रे. सी० ॥ २ ॥ इहाँ आरा है पाँचमा, तिहा चौथा आरारे, उहा तुम सुख भोगवो, हमकु न संभारो रे. सी० ॥३॥ जंघा विद्याचारणी, कोई लब्धी न दोसे रे, जई प्रभु पद भेटीये, मनडु घणु हीसेरे, सी० ॥४॥ बिज तणो जे चन्दलो, तेनी साथे हमारीरे, आय पहुचेगी वंदना, सुत कहेगो संभारीरे. सी० ॥५॥
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नंदन श्री श्रेयांसको, अंगज सत्यकोनोरे, रूक्ष्मणी राणी नाहलो, दुजे ऋषभ नगीनीरे.
सी० ॥६॥
सुपनान्तर प्रभुजी मल्या, भयो परमानन्दोरे, बुध जसवंतसागर तणो, जिनेन्द्र थुणोदोरे.
सी० ॥ ७ ॥
(५)
सुण सुण सरस्वती भगवती, ताहरी जगविख्यात, कविजननी कीर्ति वधे, तिम तुमे करजे मात.
॥ १
॥
सीमंधर स्वामी महाविदेह मा, बेठा करे बखाण, बंदना मारी त्यां जई, कहेजे चन्वा भाण.
॥२॥
मुज हृदय संशय भरयु, कोण आगल कहु बात, जेहसु बाँधु गोठडी, तस मुज न मोले घात.
॥३॥
जाणु तो आवु तुम कने, विषभ वाढ पथ दुर, डुंगर ने दरीया घणा, वच्चे नदी वहे पूर.
॥
४
॥
ते माटे ईहा कने रही, जे जे करू विलाप, ते तुमे प्रभुजी सांभली, अवगुण करजे माफ.
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ढाल पहेली भरतक्षेत्रना मानवीरे, ज्ञानी बिना मुंझाय, तेणे कारण तुमने घणुरे, प्रभुजी मनमा चहायरे.
स्वामी आवो आणे क्षेत्ररे; तुम दरिसण जे देखीयेरे, तो निर्मल थाय मारा नेत्ररे. ॥१॥
गडिरीयो परिवार मल्योरे, घणा करे ते खास, परिक्षावंत थोड़ा हुवारे, सरधानो विश्वासरे.
स्वा० ॥ २ ॥
धर्मनी तो हांसी करेरे, पक्ष विहुणो सिदाय, लोभ घणो जग व्यापीयोरे, तेणे साचु नविथायरे. स्वा. ॥३॥
समाचारी जुदी जुदी रे, सहु कहे माहरो धर्म, खोठं खरू केम जणियिरे ? ते कोण भांगे भर्म ? स्वा० ॥४॥
ढाल
(पंचमी तप तुम करो रे प्राणी) सीमंधर तु मारो साहिब, हु सेवक तारो दासरे, तुज बीना भव भर्मा करीथ कीयों, हवे आपो शिववासरे. ॥१॥ ऐणे वाटे वटेमा नावे, नावे कासीद कोई रे, कागल कुणसाथे पहुचाडु, हुं मोह्यो तुज माहीमाही रे. ॥२॥
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११
तृष्णा नु दुख होत न मुजने, होत संतोषनो ध्यानरे, तोहुं ध्यान धरत प्रभु ताहरू, स्थिर करी राखत मनरे ॥ ३ ॥
चार कषाय घट माय रहया व्यापी, रातो इन्द्रिय रसेरे, मदरपणं कहयो कयारे व्यापे मन नावे मुज वशरे.
नीवड़ परिणामे गांठो बांधी, ते केम छुटशुस्वामरे १ सेहु नर तुजमा छे प्रभुजी, आवो अमारी कमरे.
धन्यते दिन जिन जाणीयेजी, जिहां तुमशुं संजोग, संपज शे सोभागीयाजी, टलशेवेर विजोग;
अण दीठे अलजो घणोजी, दीठे नयन ठरंत,
मुज मन केरी प्रीतड़ीजी, तु जाणे जयवंत.
॥ ४ ॥
करो जिन ! सेवक जन संभाल,
तुम हो दीनदयाल, करो० तुम विण कवण कृपाल, करो० ॥१॥ •
।। ५ ।।
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करो. ॥ २ ॥
तिज कारण जिन ! दीजीयेजी निज दरिसण एकंत.
तुम विण मुज मन टलवलेजी, नयणा नीर भरत. करो० ॥ ३ ॥
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नयणे तुज परिसण रूयेजी, श्रवणे वयण सुहाय, मन मिलवाने टलवलेजी, कीजे कोडी उपाय. करो० ॥४॥
जिम मन पसरे माहरूजी, तिम जो कर परसंत, तो हुं हरखी दुरथीजी, तुम चरणे वीलगंत. करो० ॥५॥
पुण्यवंत ते पंखोयाजी, पग पग जेह पेखंत, फरी फरी देता प्रदक्षिणाजी, पूरे मननी खंत.
करो० ॥ ६ ॥
तुज दरिसण विण जीवंजी, ते जीवन मरण समान, अहवा मरण थको घणुजी, जाणु अधिक सुजाण. करो० ॥ ७ ॥
पूज्यो प्रनम्यो संथु एजोजी, तु गायो गुणवंत, जेणे तु नयनो निरखीयोजी, तस जिवित फलवंत. करो० ॥८॥
ते दोन कलही आवशेजी, मुज मन ठारणहार, • तुज मुखचंद निहालताजी, सफल करीश अवतार. करो० ॥९॥
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-: श्री सीमंधरस्वामी ना दोहा :
अनंत चोविशी जिन नमुं, सिद्ध अनंती क्रोड, केवलनाणि स्थविर सवि, बंदु बेकर जोड़.
॥१
॥
बे कोडी केवलधरा, विहरमान जिन वोश, सहसकोटि युगल नमुं, साधु नमुं निशदिन.
॥२॥
जे चारित्रे निर्मला, जे पंचानन सिंह, विषय कषाय ने गंजिया, ते प्रणमुं निविह.
॥३॥
रंकतणी परे रड़वड़यो, निधणीयो निरधार, श्री सीमंधर साहोबा, तुम बिन कोण आधार.
॥४॥
महाविदेहमां श्री सीमंधर स्वामी, नित्य वन्दु प्रभात, त्रिकरण वली त्रीयोगथी, जपुं अहरनिश जाप. ॥५॥
भरतश्रेत्र मां हुँ रहु, आप रहो छो विमुख, ध्यान लोह चूम्बकपरे, करी दृष्टि सन्मुख.
॥६
॥
ऋषभ लंछन चरणमा, कंचनवरणी काय, चोतीस अतिशय सोभता, वंदु सदर तुम पाय.
॥
७
॥
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श्री सीमंधर साहीबा, अरज करू करजोड़, जबलग शशि सुरज रहे, वंदना हमारी होय.
॥८
॥
हुंछ सेवक ताहरो, तुम छो चतुर सुजान, गुणअवगुण मत देखजो, दिलमे करूणाधार.
॥९॥
OwaRDom
(स्तवन)
काया पामी अति कुडी, पाँख नही आq उडी, लब्धी नही कोई रूडी रे, श्री युग मंदिर ने कहजो; के दधिसुत वीनतड़ी सुणजोरे.
॥१॥
तुम सेवा माहे सुरकोडी, ते इहा आवे एक दोड़ो, आशफले पातीकमोड़ी रे. श्री युग०
॥२॥
दुखम समयमा इण भरते, अतिशय नाणी नवीबरते, कहीये कहो कोण साभलतेरे.
श्री युग० ॥३॥
श्रवणे सुखीया तुम नामे, नयणा दरिसण नवी पामे, ए तो झगड़ा न ठामुरे.
श्री युग०
॥४॥
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१५
चार आगल अंतर रह, सोकलड़ी नीपरे दुश्च सहवं, प्रभु बिना कोण आगल कहरे. श्री युग० ॥५॥
मोटा मेल करी आपे, वहुंनी तोल करो थापे, सज्जन जश जगमे व्यापेरे. श्री युग०
॥६॥
बेहुनो एकमतो थावे, केवलनाण युगलपावे, तो सगली बात बणी आवे रे. श्री युग० ।। ७ ॥
गज लंछन गज गति गामी, विचरे विध विजयस्वामी, नयरी दिजया गुणधामी रे. श्री युग० ॥८॥
मस्त सुता राये जायो, सुदाइ नरपान कुल आयो, पंडत जिन विजय गायो रे.
श्री युग० ।।९।।
"
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5 श्री सीमंधर स्वामीना पाँच कल्याण को 5
च्यवन कल्याणक
भादवाबदी १
जेठबदी
१०
दीक्षा
फागण सुदी ३ चेत्र सुदी १३
केवल ज्ञान
निर्वाण
सावन सुब ३
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री. // श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः // पधारो! पधारो! प्रभावना माटे तथा प्रेजेन्ट आपवा लायक वस्तुओं मळो: पी.पी. 33438 व 3161 उत्तम वस्तु भंडार धार्मिक पुस्तको, फोटाओ, उपकरणो विगेरे वेचनार प्रो. वर्धमान एस. शाह 53, वैद्यनाथ मुदली स्ट्रीट, (अमनकोयल स्ट्रीट में) १-ले माळे मद्रास-१ दर रविवारे 408, मिन्ट स्ट्रीट, जैन मंदिरयां पण मलशे. *कांचमां इलेक्ट्रीक फोटोंगवाळा मंदिरो 3, साइजभां * कांचमां फीट करेलां तथा कपडावाला साधुम, साध्वीम. * मालाओ चांदी, सुतर, सुखड, रेडीयम, प्लास्टीक तथा लाकडानी. फोटाओ दरेकतीर्थोना, केसरियाजी, गौतमस्वामी, शंखेश्वर पार्श्वनाथ विगेरे सादा तथा रंगीन नानी मोटी साइजसां. चरवळां नाना-मोटा, लाकडानी-सुखडनी, प्लास्टीकनीडांडी वाला. * कटासणा नानामोटा मीलटनमा पजानीजोडी मोरपीछीओ * बटवा सादा तथा मोतीवाला * फोराफेमो नवकारमंत्र प्लेटो सापडा सादा-कारीगरीवाला लाकडाना तथा फेन्सी प्लास्टोकना. स्थापनाजी र बाजोठ सापडोने चोपडी. Serving linShasan * मूर्तिओ सु / पुस्तको ही नको, प्रवचनो, ज्योतिष, 131144 चप्रतिझमण - मूळ अर्थ gyanmandin kobatirth.org BHANDARI STATIONERS, MADRAS-3. For Private and Personal Use Only