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मेरुपर्वत महाविदेहनी यश-कितिस्थंभ छे, जाणे बिरुदावली बोलनार वागभट!... मेरुपर्वतथी महाविदेहना चार भाग बने छे... पूर्व महाविदेहमा पुष्कलावतं देवथी अधिष्ठित पुष्कलावती नामनी आठमी विजया जे गहांगणमां खेलती नवयौवना सभी शोभी रही छ। नृत्यांगनाना केशकलाफ्नी शोभा एक कोमळ काय पुष्प बनी जाय छ। तेम पुंडरिकगिणी नगरी पुष्कलावती विजयाने विशेष शोभ वनारी छ ।
पुष्पमा परिमल प्रसरी रहे छे, तेनी पुंडरीकगीणी नगरीनी समृद्धि, शोभा, अने त्यांनी कला सौंदर्यनी परिमले हजारो प्रेक्षको ते नगरीने नोरखवा भाटे नयनोने तृप्त करवा काजे...भ्रमरनी जेम दोडी आवे छ ।
गगनचुंबी प्रासादो अने माणिमाणेक विगेरे जव हारोनी ज्योतिथी भडेला प्रासादनी चमकीली वांदळ साये वातो करता जैन चैत्यो वणी नयनाकर्षक हाट अने चौटानी संदरता, धर्मगृहो, वनविश्राम, आरामगृहो, उपवन-बगीचा विगेरे नगरीनी समृद्धि, शोभा ते कलाना वेनभून नमूना छ ।
चैत्योनी उन्नत धजा फरकी फरकीने पोताना नगरना नरपतिनो अने देशनी आबादी अने यशने चारे दिशाओ पहोचाडती न होय एवं जणाय छे. राजा अने प्रजानी प्रीत दूध-साकर जेवी छ.. राजा नीतीवान, धर्मी अने प्रजाप्रति पूर्णप्रेमी छ प्रजाने पण राजा प्रति एटलुंज बहुमान अने समर्पण भाव छे. धर्मचाहकता • व्यवहारी कुशळता अने व्यापार कुशलता छे. ते देश, समृद्धि
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