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(२) (राग--शबुंजय मंडन ऋषभ जिणंददयाल) श्री सीमंधर जिनवर सुखवर साहीबदेव, अरिहंत सकलनी भाव धरी करूंसेव; सकलागमपारग गणधर भाखीत वाणी, जयवंती आणा ज्ञान विमलगुणखाणी. ॥१॥
सो क्रोड़ साधु साध्वी सो क्रोड जाण, ऐसे परिवार सीमंधर भगवान; दशलाख थया केवली प्रभुजीनो परिवार, वाचक यश वन्दे नित्य नित्य बारहजार. ॥१॥
स्तवन विभाग (अमन्तवीरज अरिहंत)
(१) पूर्वविदेह पुष्कलावती जयो जगपतीऐ, श्री सीमंधर स्वामी ! प्रहसमे नित्य नमुए
॥१
॥
जगत्त्रयभाव प्रकाशता, भवि प्रतिबोधताऐ, उपकारी अरिहंत, प्रह समे नित्य नमुऐ.
॥२
॥
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