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स्तुती विभाग
(राग - शत्रुंजय मंडण )
(१)
अजवाली वीजे चंदा तुं अवधार, विनतड़ी मारी जय विदेह मोझार; प्रणम सीमंधर मुज दुरीत करजोड़, नमता प्रभुजी नित पहोचे वंछित कोड़
उत्कृष्टे काले सितेरसो जगनाथ, उपजे महीमंडल मुगतीपुरीनो साथ ; तिहा केवलज्ञान केवनदर्शन अनंत, समरो भावे भवि जिम पामो भव अंत.
अढीद्विप माहे पंचविदेह प्रधान, विचरे तिहा प्रतिदीन विशविहरमान; अतिशे गुणवंता दे भवियण उपदेश, तस वाणी सुणतां सांसो नही लवलेश.
शाशनहीतकारी समकित दृष्टि देव, से सानिध्य कीजे श्री संघनित प्रतिमेव; श्री विजयगच्छनायक सागरज्ञानसुरिद, पद पंकज प्रणमुं अहनिश वीर जिणंव.
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