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हु उत्सुक बहु परे कहुं, पण न गणु हो काँई रीझ अरीझके, ऐलक्षण रागो तणो, तिणे भाख्यु हो सघलू मनगुजके
श्री सीमंधर साहीवा० ॥४॥
"ज्ञानविमल" प्रभु आपणो, जाणीने हो कीजे उच्छाहके, उत्तम आप अधिक करे, आवी मल्या हो ग्रह्या जे बाह्यके.
श्री सीमंधर साहीबा० ॥५॥
(४)
सीमंधरजीकुं वंदना, नित होयजे हमारी रे, मन बचन काया वीके करी, सेवा चाहुं तुमारी रे. सी० ॥१॥
तुमे तो विदेह मा जई वस्या, हम भरत मा बेठे रे, मनडु चाहे इण घड़ी, जई किम पद भेटे रे. सी० ॥ २ ॥ इहाँ आरा है पाँचमा, तिहा चौथा आरारे, उहा तुम सुख भोगवो, हमकु न संभारो रे. सी० ॥३॥ जंघा विद्याचारणी, कोई लब्धी न दोसे रे, जई प्रभु पद भेटीये, मनडु घणु हीसेरे, सी० ॥४॥ बिज तणो जे चन्दलो, तेनी साथे हमारीरे, आय पहुचेगी वंदना, सुत कहेगो संभारीरे. सी० ॥५॥
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