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अग्निकुमारे उत्सम सुवासित धूप पेटाव्यो व्यंतरनिकायना देवोए रूपानो गढ सुवर्णना कांगरा...
ज्योतिषी देवोए कनकनो गठ स्फटिकनां कांगरा.
वमानिक सुरवरोए स्फटिकनो गढ अने मणिभाणेकना कांगरा बनाव्या. देवच्छंदक, तथा चार दरवाजा, दरवाजे दरवाजे तोरणो कमल युक्त वावडी, सोपान श्रेणि, तेमज प्रभुजी थी बारगणुं उचं अशोकवृक्ष, ढीचण प्रमाण पंचरंगी सुवासित कुसुमोनी वृष्टि करी, दिव्य ध्वनि, चामर, आसन, भामंडल, त्रणछत्र, दुंदुभी आम समवसरण अने अष्ट प्रातिहार्यनी देवोए रचना करी...
इंद्रध्वज, नवकमलो, विगेरे अद्वितीय शोभा बनो गया. आथी लोकोत्तर तीर्थंकर नामकर्मनो पुनित प्रभाव जगमा विस्तर्यो.
प्रभुजीए समवसरणमा पूर्व द्वारथी प्रवेश करी त्रण प्रदक्षिणा बोधी अशोक वृक्षने...
__ 'नमो तीथ्थस्स' पदद्वारा नमस्कार करो श्री सोमंधर परमात्मा सिंहासन पर आरुढ पया. त्रण दिशामांत्रण बिबोनी स्थापना देवोए करी....
प्रभजीए चतुर्मुखथी कर्मसंताप अने भवतापने हरनारी शीतल, अमृतसमान वाणीनोधीध बरसाव्यो...
वाणीना धोधथी बोधपामी भवसंसार निरोध करवा केटलाए प्राणीए प्रभनो मार्ग स्वीकार्यो...
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