Book Title: Bharat Kshetrana Manvini Simandhar Jin Prati Haiyani Vat
Author(s): Amitgunashreeji
Publisher: Sundar Sahitya Seva Sadan
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धन्य नयरी धन्यते नरा, धन्यते धराने, विचरे जिहा श्री जिनराज, प्रहसमे नित्य नमुऐ
॥४॥
धन्य दिवश धन्यते घड़ी, देखसु आखड़ीऐ, भक्तवत्सल भगवंत, प्रह समे नत्य नमुऐ माहेर नजर अवधारजो, पतित उगारजोऐ, जिन हर्ष गणेश सनेह, प्रह समे नित्य नमुए.
॥५॥
(ऋषभ जिणंदशु प्रोतड़ो-ऐ देशी)
(२)
श्री "सीमंधर" साहीबा सुणो संप्रतिहो भरत क्षेत्रनी बातके, अरिहा केवली कोनही, केने कहीये हो मनना मवदातके.
श्री सोमंधर. ॥१॥
झाझं कहेता जुगतुं नहीं, तुम सोहे हो जग केवलनाणके, मुंख्या भोजन मांगता, आवे उलट हो अवसरना जाणके.
श्री सीमंधर० ॥२॥
कहेशो तुमे जुगता नही, जुगताने होवली तारे साईके, योग्य जननु कहेवृकिस्य, भावहीनने हो तारो ग्रही वाहीके.
श्री सीमंधर० ॥३॥
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