Book Title: Bharat Kshetrana Manvini Simandhar Jin Prati Haiyani Vat
Author(s): Amitgunashreeji
Publisher: Sundar Sahitya Seva Sadan

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Page 87
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ तृष्णा नु दुख होत न मुजने, होत संतोषनो ध्यानरे, तोहुं ध्यान धरत प्रभु ताहरू, स्थिर करी राखत मनरे ॥ ३ ॥ चार कषाय घट माय रहया व्यापी, रातो इन्द्रिय रसेरे, मदरपणं कहयो कयारे व्यापे मन नावे मुज वशरे. नीवड़ परिणामे गांठो बांधी, ते केम छुटशुस्वामरे १ सेहु नर तुजमा छे प्रभुजी, आवो अमारी कमरे. धन्यते दिन जिन जाणीयेजी, जिहां तुमशुं संजोग, संपज शे सोभागीयाजी, टलशेवेर विजोग; अण दीठे अलजो घणोजी, दीठे नयन ठरंत, मुज मन केरी प्रीतड़ीजी, तु जाणे जयवंत. ॥ ४ ॥ करो जिन ! सेवक जन संभाल, तुम हो दीनदयाल, करो० तुम विण कवण कृपाल, करो० ॥१॥ • ।। ५ ।। For Private and Personal Use Only करो. ॥ २ ॥ तिज कारण जिन ! दीजीयेजी निज दरिसण एकंत. तुम विण मुज मन टलवलेजी, नयणा नीर भरत. करो० ॥ ३ ॥

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