Book Title: Bharat Kshetrana Manvini Simandhar Jin Prati Haiyani Vat
Author(s): Amitgunashreeji
Publisher: Sundar Sahitya Seva Sadan
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११
तृष्णा नु दुख होत न मुजने, होत संतोषनो ध्यानरे, तोहुं ध्यान धरत प्रभु ताहरू, स्थिर करी राखत मनरे ॥ ३ ॥
चार कषाय घट माय रहया व्यापी, रातो इन्द्रिय रसेरे, मदरपणं कहयो कयारे व्यापे मन नावे मुज वशरे.
नीवड़ परिणामे गांठो बांधी, ते केम छुटशुस्वामरे १ सेहु नर तुजमा छे प्रभुजी, आवो अमारी कमरे.
धन्यते दिन जिन जाणीयेजी, जिहां तुमशुं संजोग, संपज शे सोभागीयाजी, टलशेवेर विजोग;
अण दीठे अलजो घणोजी, दीठे नयन ठरंत,
मुज मन केरी प्रीतड़ीजी, तु जाणे जयवंत.
॥ ४ ॥
करो जिन ! सेवक जन संभाल,
तुम हो दीनदयाल, करो० तुम विण कवण कृपाल, करो० ॥१॥ •
।। ५ ।।
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करो. ॥ २ ॥
तिज कारण जिन ! दीजीयेजी निज दरिसण एकंत.
तुम विण मुज मन टलवलेजी, नयणा नीर भरत. करो० ॥ ३ ॥
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