Book Title: Bharat Kshetrana Manvini Simandhar Jin Prati Haiyani Vat
Author(s): Amitgunashreeji
Publisher: Sundar Sahitya Seva Sadan

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० तारा विरहनुं तडपन जलावे छ, साचेज "तडपन करता तृप्तिनी नजर प्राणीने प्राणवान बनावे छे" एथी ज तो आ विषमकाळनी विषमतामां पण संत श्री वीरविजयजी महाराज तृप्तिना आनंदमां लखे छे के, "हे प्रभु तारुं साक्षात दर्शन नथी ए अमारु कममाग्य... परंतु सद्भाग्य ए छे के जिनागम-आंख अने जिनमंदिर अमारा जं वनना धमकार समान भल्या छ। जेना आधारे प्राणी अल्प समयमा आराधना द्वारा आत्मकार्यनी साधना करी जाय छे... थोडा समयमां घणुं काम करवू एज खुमारी छे। तेमांज अमारी तृष्णा-तृप्ति पूर्वक प्रयास करीशुं तो पछी हुँ घणो दूर नथी। पण ज्यारे संसारनी अगथी हैयानी धाग बेसी जाप छ, त्यारे एना तरफ नजर करवी मुश्केली छ। माटे रहेम नजरी! अमारी पर कृपा करी श्रद्धाना संजीवन सींचजो जेथी तारा फरमावेला पानाना काळा अक्षरो अमारी हैयानी हाम, ओथ, अने प्राण बने.. तारी भक्ति अमारी शक्ति बने... तारुं स्मरण अमारा कर्मकलंकनुं मारण बने... तारं अर्चन अमारी सिद्धीन कामण बने.... ऐ, उपकारी महावीर प्रभ तारा शासन ने न पाम्यो... परंतु तारो वियोग. तारुं आगम पाम्यो पण तारा साक्षात दर्शननो विरह.. तारा शासनना रंगथी हैयामां तने निहाळवानो उमंग छे! पण क्यां मणे? ए अरिहंतना दर्शन, वंदन, पूजन For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93