Book Title: Bharat Kshetrana Manvini Simandhar Jin Prati Haiyani Vat
Author(s): Amitgunashreeji
Publisher: Sundar Sahitya Seva Sadan

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Page 56
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विश्वना प्राणीना उपकार ने माटे प्रभुए चतुर्विध संघनी स्थापना करी...साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, त्रीपदीने प्रभुजी संभलावे छे अने गणधरो सूत्रमा गुंथन करे छे. प्रभुजीने ज्यारथी केवलज्ञान उत्पन्न थाय छे त्यारथी प्रभुजी ज्यां ज्यां विचरे त्यां सवासो योजन सुधी कोई, उपद्रव, रोग, भय, इति, इलति होता नथी, आवेला रोग उपद्रवोशांत थाय छेनवा एक वरससुधी आवता नथी...षट् ऋतुओसमकाले फले छे. वृक्षी नमो नमीने प्रभजीने प्रणाम करे छे. पंखीओ प्रदक्षिणा दे छे. आछे प्रभुजीना अतिशयीनो चमत्कार ! चैत्रसुद त्रयोदशी प्रभुजीना ज्ञानदीपकनी यादी बनी गई... प्रभजीनी वाणी केवी अद्भुत ! ...मालकोशराग मयने सांभळतांज विषधरोना विष उत्तरी जाय... शत्रुओनो केफ दूर थाय... प्राणोनी भूख अने तृषा सो गाउ दूरे चाली जाय। पेला सिंह अने हस्ति भाई भाई बनीने आवे ।... श्रमवाळानो श्रम दूर थइ जाय विना बोज उतारे अने हळ्वो फुल बनी जाय... जे बाणीमां समताना सागर भर्या छे... जे वाणीमां क्षमानी गागर छलके छे... जे वाणीमां अमृतना रसकुंपा छे... जैमां चंदनशी शीतलता...वारी शी निर्मळता-समीर शी गुंजन छे... For Private and Personal Use Only

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