Book Title: Bharat Kshetrana Manvini Simandhar Jin Prati Haiyani Vat
Author(s): Amitgunashreeji
Publisher: Sundar Sahitya Seva Sadan

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भोग-उपभोगमा विहरतां छतां पिमंघर कुमारने मन भोग रोग जेवा लागे छ प्रोनीना बंधन लोखंडना शृंखला सम.न देखाय छे स्वां समान संपार असार जेल समान.... भासे छ। ईन्द्रीय जन्य सुखने विषम विष समान निहाळे छ.... संसारनो मोह खोटो व्य मोह छ....भ्रम छ.. राजसंपत्ति विपत्तिना जननी छे.... समस्त दुन्यत्रो सुख दुःखनो अमावास्या छे.. दिलमां कोई शुमफळनो आश उठे छे... आत्मशघिन माटे है, हरखी उठे छे.... संपार एने ऋरे समान थई पडयो छ.. संसारनी सर्व कायवाडी भाथाबोज जेवो लागे छ, बोजथो परिश्रमीत जोवन काई आराम इच्छे छ...तेज प्रमाणे सिमंधर कुमारनी मनोच्छा आराम... संथम, तरफ हळी पडो... संसारना आवासमां वास करता छनां संसार तरफ निराश बन्या. धर्मपथने जीवननो पंथ बनावी परापकारने मुख्य मित्र बनाव्यो हतो. कोईने सहाय.. कोई ने ज्ञान.. कोईने आश्वासन,...तो कोईने प्रेरणा... आ रीते जवन धाग वहेतो हतो. पोतानो अंतर उत्सुकता आत्मकल्याण-परकल्याण मार्गे जवानी छे ए बात एक आथमती संध्याए माता पिता समक्ष निमंधर कुमारे उच्चारी वात सांभळता ज माता-पिताओ धरतो कंप नो आंचको अनुभव्यो। समजु मानवी एक क्षण भर आघातना आंबकाने अनुभवे छे, खरा पण तुरजत ज्ञान प्रज्ञाथी तेने पचावी जाणे छे... For Private and Personal Use Only

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