Book Title: Bharat Kshetrana Manvini Simandhar Jin Prati Haiyani Vat
Author(s): Amitgunashreeji
Publisher: Sundar Sahitya Seva Sadan
View full book text ________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
छंटकाव अने सुरमी कुसुमोनी वष्टि वरसी रही। पंडरीकगीणी जाणे पूजाथी पवित्र थई हसी रही। प्रभुजी, स्वागत करवा।
विविध वांजोत्रोना नाद, निशान, ढोल, नोवत ना नादथी, बंदोजनोनी विरुदावलौना बोलथी वातावरण गुंजतुं बनी गयं आलण देवो पाछल साजन महाजन, प्रभुजीनी पालखी इंद्र अने देवो उपाडी ले छ...
हे प्रभु तारा पंथने देशबिरतीने ग्रहण करवाने असमर्थ छोए तो आ तन जे काची माटी नो पींड छ तेने तपथी नही पण तारी सेवाथी पवित्र करवा दे.
दीक्षानो वरघोडो चाल्यो...
प्रभुए सर्व आभरण-भूषणनो त्याग कर्यो, इंद्रे अभिषेक कर्यो...
हजारो पुरुषो साथे फागण सुद त्रीजनो उत्तम योगे तीरयासी लाख पूर्वनो धरवास छोडी...
संसारना फटक्या रंगो समान संबधो-सगपणो त्यागी दोधा। संयमना पंथे लागी गया...पंचमुष्टि लोच करी संयमी बनी गया।
सर्प कांचळी उतारे तेम संसारनो अंचलो फेंकी दीधो...
विशेष तो वरघोडो पसार थता त्यां प्रभुना रूपने नोरखवाने, प्रभुनी अलगारी प्रतिमाने नीहाळवा मानवोनी ठाठ जामती...
For Private and Personal Use Only
Loading... Page Navigation 1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93