Book Title: Bharat Kshetrana Manvini Simandhar Jin Prati Haiyani Vat
Author(s): Amitgunashreeji
Publisher: Sundar Sahitya Seva Sadan

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक आशे. एक राशे... दूर रहया सूर्यना किरणो पृथ्वीने आलिंगन करी उष्मा, तेज अने चेतन आपे छे तेम एन ध्यान, स्मरण अने भक्ति मने उष्मा, तेज अने चेतन आपो मने प्रभुमय करशे....मारी वेदनाने सांभळशे. प्रेमनो प्रवाह पापीनो पलटो लावे तेम, प्रभ ! प्रेम अने प्रभ स्मरण मानवीना हृदय ने पलटावे छे. क्यां भरत क्षेत्र ! अने भरतक्षेत्रना बदनशीबवान मानवी! क्या महाविदेहनी पुण्यवान भूमि ! क्या पुष्कलावती नगरी याने आठमी विजय ! पूण्यांशी क्षेत्र, महाविदेहनो मानवी श्री सिमंधर प्रभुने पामी महान बनी चूक्यो ? त्यारे भरतनो मानवी झंखना करी करी झरी मथों. वियोग वादळ हठे नहिं ने विहरता देवना दर्शन मळे नहि. छतां एकज आशा....! अरमान ....! आल्हाद के " श्री सिमंधर जगधणी, आ भरते आवो... भरतक्षेबना मानवी, ज्ञानो विना मुंज्ञाय छे.... मननी मंझवण कोने कहे....? क्या हैया पामर पोकारे ?" आ विचारोतुं वलोj धुमी द्युमी मंथन करी तोफानी आत्माने जागृत करे छ ने! श्री सूर्यशिशु For Private and Personal Use Only

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