Book Title: Bharat Kshetrana Manvini Simandhar Jin Prati Haiyani Vat
Author(s): Amitgunashreeji
Publisher: Sundar Sahitya Seva Sadan
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"प्राणतत्व यो प्रेममय बनी झंखना सेवाय तो सिमंधरस्वामि साक्षात् मळे."
हे सिमंधर देव ! हुँ तारा गीतो गातो गातो आव्यो छु। वेदना अने वियोगना गान गाया, एमां हैयान गीत रेडयु. मारां गीतनो रोत सांभळी कइक आत्माना तार रणझणी उठया. पण हूं अधुरो ? अलिप्त बन्यो, मारा हैयाना तार रणझणावता पण तं न आव्यो ते न ज आव्यो कारण..?
तने जे रीते ओळखवो जोइए तेरीते न ओळरव्यो. पण हे स्वामि ? हे महाविदेहि मंधरप्रभु ! आजनो मारी वेदना शमती नथी. मन शांत पडतु नथी. हवे गीतो गावा नथी. हवे तो मारे तने साक्षात् मळवू छ.
प्रभु मिलननो लगनमा...ए विचारधारामां हुँ स्थित बनतो गयो भावसारे झुलता झुलता नयनोए झोक लोधी....ने ?
त्यां तो आणे चंद्रनी ज्योत्स्नानुं शीतल अने तेजस्वी किरण सिमंधरजिनना आगमननो संदेशो लइ मारी तरफ गति करतुं जणायुं हुं झबक्यो चारे तरफ अजवाळां पथराइ गया. ए प्रकाशमां प्रभुं सिमंधरना दर्शन थयां
मारा सुना हैयामां! मारा सुसुप्त दिलमां! मारा अंधकारभर्या अंतरमां! ....प्रभनो वास थयों....आतम जागति पई प्रकाशं थयो न जोवानं जीयं....मारो जीवडो नर्तन करवा लाग्यो.
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