Book Title: Bharat Kshetrana Manvini Simandhar Jin Prati Haiyani Vat
Author(s): Amitgunashreeji
Publisher: Sundar Sahitya Seva Sadan
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मनतो जीवन एटले लोलीकुंजवननो हरियाळी मस्ति प्रकृतिनी प्रमलीलानी प्यासा ? सृष्टिना सौन्दर्य, सुमधुर पान | आनंद पिपासने शमाववानुं सुख केन्द्र ! सोनल समणानुं स्वर्ग! पण ज्यां जोवनमा झंझावात ! अने झाशवाना नीरसमा वैभव विलासमां एकाद दुःखनी लपडाक पडे के तरत मानवी नरम थइ जाय छे. पामर थह जाय छे. ए पीडती पामरता मानवीने जुदी दृष्टि आ छे....ने? मानवी कर्मने मानवा मर्मने शोधवा....भेदवा तैयार थइ जाय छ
मानवीना मन अने जीवन- पण एवं छे. आकाशतलमां मनमोहक रंगो भले पूराया होय पण घडी नयनोने शांत करशे अने पुनः अजंपा.
तो तो! अधीरा थाशो मा.... परमतृप्ति, परमप्राप्ति अने स्वतत्त्वनी झंखना, खेवना अने खोज माटे तो अजपानी आहलेक जगववीज पडशे.
बलोणाना वलोपात-अंजपा पछी ज नवनीत प्राप्य बने छे.
साची झंखनामां झूरतो मानवी ज इच्छित वस्तुनी साखी मेळवी शके छे.
___सांभळ्यु छ के भरतना मानवोनो साची वेदना युक्त तलसाट मर्यो भाव होय तो सिमंधर स्वामीना दर्शन करी शके छे. शूलीए सूवा जतां शियळना प्रभावे सिंहासन बने,
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