Book Title: Bharat Kshetrana Manvini Simandhar Jin Prati Haiyani Vat
Author(s): Amitgunashreeji
Publisher: Sundar Sahitya Seva Sadan

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हैयाना उद्गार हैयामा बिराजेला, दूर दूर बसेला, मानवीना अंतर अंधारना ओळाने फगाववा समर्थ, सुभाव सरीतामांथी बहेती भरतक्षेत्रना मानवीनी वंदनाने स्वीकारनारा, श्वासोश्वासमाये जेनो वस्यो छे वास एवा साक्षात प्रभु वीतराग श्री सिमंधर ना गुण गावा के लखवा एतो जीभमां सरस्वतीदेवीनो बास थइ जाय, अने एकी साथे हजार कलमो बडे लखीए, तो पण ले गाइ के लखी शकाता नथी. तो मारी वात शंकरुं? हुं साहित्यकार छु एवो दावो करती नथी, के कोइ लेखक छ एवो दावोये करती नथी, मारामां कोइ शक्ति छ एवो दावो पण करती नथी. पण ज्यां हृदयज, ए हृदय संवेदना अनुभवी महान आत्माना जीवन प्रति दृष्टि नांखी दिव्यदर्शन थतां वरदान मांगे तो, ए सरस्वतीदेवीनी अने कलमनी प्रसादी प्रेमरूपे... बक्षीसरूपे सहज उत्तरे छे. ए निःशंक छे.. अनुभव सिद्ध छे. मारी ऊंडी वेदना - अटल श्रद्धा, ए प्रभुना गुण-गान गावामा प्रेराइ छ. मळवा माटे मनोरथो भर्या छ, पण भगवान दूर सुदूर एने पापथी भरपूर रहेला आतमनी भावना क्याथी पूरी करे !!! अरे ! शामाटे पूर्ण न करे ! ए प्रभुना नेत्रोमां ज एवी करुणा भरीछे के जो भक्तनी नजर प्रभुपर ठरी के ए प्रभुनी दृष्टि भक्त पर स्थित थइ ज For Private and Personal Use Only

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