Book Title: Bhagwati sutram Part 02
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 585
________________ नगरीओ पुन्नभद्दाओ चेइयाओ पडिनिक्खमति पडिनि०२ पुवाणुपुत्विं चरमाणे गामाणु० जाव विहरमाणे जेणेव सिंधुसोवीरे जणवए जेणेव वीतीभये णगरे जेणेव मियवणे उजाणे तेणेव उवा०२ जाव विहरति । तए णं वीतीभये नगरे सिंघाडगजाव परिसा पजुवासइ । तए णं से उदायणे राया इमीसे कहाए लट्टे समाणे हद्वतुट्ट० कोडंबियपुरिसे सद्दावेति को०२ एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! वीयीभयं नगर सभितरवाहिरियं जहा कूणिओ उववाइए जाव पजुवासति, पभावतीपामोक्खाओ देवीओ तहेव जाव पजवासंति, धम्मकहा । तए णं से उदायणे राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोचा निसम्म हहतुढे उठाए उढेइ २ समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एवं वयासी-एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! जाव से जहेयं तुज्झे वदहत्तिकट्ट जं नवरं देवाणुप्पिया ! अभीयिकुमारं रज्जे ठावेमि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पचयामि, अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं । तए णं से उदायणे राया समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुढे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति २ तमेव आभिसेकं हत्थि दुरूहइ २त्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ मियवणाओ उजाणाओ पडिनिक्खमति प० २ जेणेव वीतीभये नगरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए । तए णं तस्स उदायणस्स | रन्नो अयमेयारूवे अन्भत्थिए जाव समुप्पज्जित्था-एवं खलु अभीयीकुमारे ममं एगे पुत्ते इट्टे कंते जाव किमंग पुण पासणयाए, तं जति णं अहं अभीयीकुमारं रज्जे ठावेत्ता समणस्स भगवओमहावीरस्स अंतियं व्या.१०४ Jain Education Internatonal For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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