Book Title: Bhagwati sutram Part 02
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 652
________________ व्याख्या- प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः२ ॥६५२॥ इति, उक्तञ्च-"ईसीपब्भाराए उवरिं खलु जोयणस्स जो कोसो । कोसस्स य छन्भाए सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥१॥" १४ शतके इति । [ ईषत्प्राग्भाराया उपरि योजनस्य यः क्रोशः खलु क्रोशस्य च षष्ठो भागः एषा सिद्धानामवगाहना भणिता॥१॥] उद्देशः 'देसूर्ण जोयणं'ति इह सिद्ध्यलोकयोर्देशोनं योजनमन्तरमुक्त आवश्यके तु योजनमेव, तत्र च किञ्चिन्न्यूनताया अविव- शालतोष्ट क्षणान्न विरोधो मन्तव्य इति ॥ अनन्तरं पृथिव्याद्यन्तरमुक्तं तच्च जीवानां गम्यमिति जीवविशेषगतिमाश्रित्येदं है उम्बरयष्टी नामेकावता सूत्रत्रयमाह रतासू५२८ ___ एस णं भंते ! सालरुक्खे उपहाभिहए तण्हाभिहए वग्गिजालाभिहए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति कहिं उववजिहिति?, गोयमा ! इहेव रायगिहे नगरे सालरुक्खत्ताए पचायाहिति, से णं तत्थ | अचियवंदियपूइयसकारियसम्माणिए दिवे संचे सच्चोवाए सन्निहियपाडिहेरे लाउल्लोइयमहिए यावि भवि|स्सइ, से णं भंते ! तओहितो अणंतरं उच्चट्टित्ता कहिं गमिहिति कहिं उववजिहिति ?, गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहितिजाव अंतं काहिति॥एस भंते!साललट्ठिया उण्हाभिया तण्णाभिहया दवग्गिजालाभिहया| || कालमासे कालं किचा जाव कहिं उववजिहिति ?, गोयमा! इहेव जंबूद्दीवे २ भारहे वासे विञ्झगिरिपायमूले | महेसरिए नगरीए सामलिरुक्खत्ताए पच्चायाहिति,सा णं तत्थ अच्चियवंदियपूइय जाव लाउल्लोइयमहिए यावि 8॥६५२॥ भविस्सइ, से णं भंते ! तओहिंतो अणंतरं उच्चट्टित्ता सेसं जहा सालरुवखस्स जाव अंतं काहिति । एस णं भंते ! उंबरलट्टिया उण्हाभिहया ३ कालमासे कालं किच्चा जाव कहिं उववजिहिति ?, गोयमा ! इहेव जंबु. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664