Book Title: Bhagwati sutram Part 02
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 607
________________ ॥ अथ चतुर्दशशतकम् ॥ व्याख्यातं विचित्रार्थ त्रयोदशं शतम्, अथ विचित्रार्थमेव क्रमायातं चतुर्दशमारभ्यते, तत्र च दशोद्देशकास्तत्सब्रहगाथा चेयम् चर १ उम्माद २ सरीरे ३ पोग्गल ४ अगणी ५ तहा किमाहारे ६। संसिह ७ मंतरे खलु ८ अणगारे ९ | केवली चेव १०॥१॥रायगिहे जाव एवं वयासी-अणगारे णं भंते ! भावियप्पा चरमं देवावासं वीति|कते परमं देवावासमसंपत्ते एत्थ णं अंतरा कालं करेज्जा तस्स णं भंते ! कहिं गती कहिं उववाए पन्नत्ते?,। | गोयमा ! जे से तत्थ परियस्सओ तल्लेसा देवावासा तहिं सस्स उववाए पन्नत्ते, से य तत्थ गए विराहेज्जा | कम्मलेस्सामेव पडिमडइ, से य तत्थ गए नो बिराहेजा एयामेव लेस्सं उपसंपज्जित्ताणं विहरति । अण गारेणं भंते ! भावियप्पा चरमं असुरकुमारावासं वीतिकंते परमअसुरकुमारा० एवं चेव एवं जाव थणियकु|मारावासं जोइसियावासं एवं वेमाणियावासंजाव विहरइ ॥ (सूत्र५००) नेरइयाणं भंते! कहं सीहागती कहं सीहे. |गतिविसए पण्णत्ते?, गोयमा से जहानामए-केइ पुरिसेतरुणे बलवं जुगवं जाव निउणसिप्पोवगए आउद्वियं बाहं पसारेजा पसारियं वा बाहं आउंटेजा विक्खिण्णं वा मुर्हि साहरेजा साहरियं वा मुर्हि विक्विरेजा | उन्निमिसियं वा अच्छि निम्मिसेजा निम्मिसियं वा अच्छि उम्मिसेजा, भवे एयारूवे ?, णो निणढे समढे, JainEducation.in For Personal & Private Use Only alww.jainelibrary.org

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