Book Title: Bhagwati sutram Part 02
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 635
________________ दिभित्तिं पर्वतखण्ड वेति "उल्लंघेत्तए'त्ति सकृदुल्लङ्घने 'पल्लंघेत्तए वत्ति पुनः पुनर्लङ्घनेनेति ॥ चतुर्दशशते-14 पञ्चमः ॥१४-५॥ पञ्चमोदेशके नारकादिजीववक्तव्यतोक्ता षष्ठेऽपि सैवोच्यते इत्येवंसम्बद्धस्यास्येदमादिसूत्रम्रायगिहे जाव एवं वयासी-नेरइयाणं भंते ! किमाहारा फिंपरिणामा किंजोणीया किंठितीया पण्णत्ता?, गोयमा ! नेरइया णं पोग्गलाहारा पोग्गलपरिणामा पोग्गलजोणिया पोग्गलद्वितीया कम्मोवगा कम्मनियाणा कम्महितीया कम्मुणामेव विप्परियासमेंति एवं जाव वेमाणिया (सूत्रं ५१८)॥ नेरइया णं भंते ! किं वीयीदवाई आहारेंति अवीचिवाई आहारेंति ?, गोयमा ! नेरतिया वीचिदवाइंपि आहारेंति अवीचिदवाइंपि आहारेंति, से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ नेरतिया वीचि० तं चेव जाव आहारेंति ?, गोयमा ! जे गं नेरइया एगपएसूणाइंपि दवाई आहारेति ते णं नेरतिया वीचिदवाइं आहारेंति, जे णं नेरतिया पडि-| पुन्नाई दवाई आहारेति ते गं नेरइया अवीचिदवाई आहारेति, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जाव आहारेति, एवं जाव वेमाणिया आहारेंति (सूत्रं ५१९)॥ | 'रायगिहे'इत्यादि, "किमाहार'त्ति किमाहारयन्तीति किमाहाराः 'किंपरिणाम'त्ति किमाहारितं सत्परिणामयन्तीति किंपरिणामाः 'किंजोणीय'त्ति का योनिः-उत्पत्तिस्थानं येषां ते किंयोनिकाः, एवं किंस्थितिकाः, स्थितिश्च अवस्थानहेतुः, SAMSARONLINECOLORCAMSANG jain Education na For Personal & Private Use Only Dilw.jainelibrary.org

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