Book Title: Bhagwati sutram Part 02
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 602
________________ व्याख्या प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २ ॥६२७॥ हत्थकिञ्चगएणं अप्पाणेणं सेसं जहा केयाघडियाए, एवं छतं एवं चामरं, से जहानामए- केइ पुरिसे रयणं गहाय गच्छेजा एवं चेव, एवं वरं वेरुलियं जाव रिट्ठ, एवं उप्पलहत्थगं एवं पउमहत्थगं एवं कुमुदहत्थगं एवं जाव से जहानामए - केइ पुरिसे सहस्सपत्तगं गहाय गच्छेजा एवं चेव, से जहानामए - केइ पुरिसे भिसं अवद्दालिय २ गच्छेजा एवामेव अणगारेवि भिसकिञ्चगएणं अप्पाणेणं तं चेव, से जहानामए - मुणालिया सिया उद्गंसि कार्य उम्मजिय २ चिट्ठिज्जा एवामेव से जहा वग्गुलीए, से जहानामए - वणसंडे सिया किण्हे | किण्होभासे जाव निकुरंबभूए पासादीए ४ एवामेव अणगारेवि भावियप्पा वणसंडकिञ्चगएणं अप्पाणेणं उहुं वेहासं उप्पाएजा सेसं तं चेव, से जहानामए - पुक्खरणी सिया चउक्कोणा समतीरा अणुपुव सुजायजाव|सहुन्नइयमहुरसरणादिया पासादीया ४ एवामेव अणगारेवि भावियप्पा पोक्खरणीकिञ्चगएणं अप्पाणेणं उहूं वेहासं उप्पएज्जा ?, हंता उप्पएज्जा, अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवतियाई पभू पोक्खरणी किच्च गयाई रुवाई विउवित्तए १, सेसं तं चैव जाव विउविस्संति वा । से भंते ! किं मायी विजवति अमायी विउवति ?, गोयमा ! मायी विउधर नो अमायी विउवइ, मायी णं तस्स ठाणस्स अणालोइय० एवं जहा तइयसए चउत्थुद्देसए जाव अत्थि तस्स आराहणा । सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइत्ति ( सूत्रं ४९८ ) ॥ १३-९ ॥ 'रायगि' इत्यादि, 'केयाघडियं'ति रज्जुप्रान्तबद्धघटिकां 'केयाघडिया किच्चहत्थगएणं'ति केयाघटिकालक्षणं यत्कृत्यं कार्यं तत् हस्ते गतं यस्य स तथा तेनात्मना 'वेहासं'ति विभक्तिपरिणामात् 'विहायसि' आकाशे 'केयाघ Jain Education International For Personal & Private Use Only १३ शतके ९ उद्देशः साधोः केतघटिकादिवै क्रियकृतिः सू ४९८ ॥६२७॥ "www.jainelibrary.org

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