Book Title: Bhagavati Aradhana Author(s): Shivarya Acharya Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh SolapurPage 13
________________ १० भगवती आराधना परामर्शके अनुसार हमने प्रायः सभी उपलब्ध गाथाओंको स्थान दिया है। ऐसी भी कुछ गाथाएँ मूलमें सम्मिलित हो गई हैं जो विजयोदयामें उद्धृत हैं। हमने उन्हें मूलसे अलग करके टीकामें ही स्थान दिया है। जैसे गाथा ८०० की टीकाके अन्तर्गत हिसाके प्रकरणमें पाँच गाथाएँ 'उक्तं च' करके उद्धृत हैं। इसी तरह पंच परावर्तनके वर्णनमें भी कुछ गाथाएँ उद्धृत हैं। वे सब मूलमें सम्मिलित हो गई हैं। इन दोनोंकी संख्या आठ हो जाती है। फिर भी शोलापुरसे मुद्रित प्रतिमें गाथा संख्या २१७० है और इस संस्करणमें गाथा संख्या २१६४ है। इस तरह केवल छह का अन्तर है। __ हमारी अ और आ० प्रतिमें अन्तिम संख्या २१४८ है। इसका कारण यह भी है कि कुछ गाथाओंको क्रममें सम्मिलित नहीं किया गया है। कहीं क्रम संख्या छूट गई है। शोलापुरसे मुद्रित प्रति और उक्त हस्तलिखित प्रतियोंके गाथा क्रमांकका अन्तर नीचे दिया जाता है मुद्रित प्रति-२०१, ३०३, ४०४, ५०४, ६०३, ७०७, ८१३, ९१२, १०११, १११४, १२१५, १३१४, १५१५, १६१६, १७१३, १८१६, १९१९, २०२२, २१२०, २१७० । इनके स्थानमें हस्तलिखित प्रतियोंमें प्रायः पूर्णाङ्क हैं अर्थात् जैसे २१२० के स्थान पर २१०० है। केवल २१७० के स्थानमें २१४८ है। अब शोलापुरसे प्रकाशित संस्करण और वर्तमान प्रस्तुत संस्करणके गाथा अन्तरको स्पष्ट करना उचित होगा। प्रारम्भसे २७ गाथा पर्यन्त दोनोंमें कोई अन्तर नहीं है। २७ के पश्चात् शोला० प्रतिमें जो गाथा दी है उसपर २८ नम्बर दिया है। किन्तु यह मूलकी नहीं है। आशाधरजीने इसके सम्बन्धमें अपनी टीकामें स्पष्ट लिखा है कि अन्यत्रसे लाकर इसे सूत्र में पढ़ते हैं। अतः यहाँसे एकका अन्तर प्रारम्भ होता है । आगे शोला० प्रतिमें ११६ नम्बर दो बार पड़ गया है। पहले ११६, ११७, ११८ है और पुनः ११६ से प्रारम्भ कर दिया है।, इस तरह प्रस्तुत संस्करणमें जिस गाथा पर ११९ क्रमांक है उसमें शोला० में ११७ है। . आगे 'मयतण्हियाओ' आदि गाथाके पश्चात् प्रस्तुत संस्करणमें 'परिहर तं मिच्छत्तं' इत्यादि गाथा है। इस पर ७२५ क्रमांक है। यह शोला० प्रतिमें नहीं है। इसपर न तो विजयोदया है और न आशाधरकी पंजिका है । फिर भी प्रतियों में पाई जानेसे इसे दिया गया है। इस तरह एकका अन्तर रह जाता है। "हिंसादो अविरमण' इत्यादि गाथाकी विजयोदया टीकामें स्पष्ट रूपसे 'उक्तं च' लिखकर पाँच गाथाएँ उद्धृत हैं। शोला० में इन सबको मूलमें सम्मिलित कर लेनेसे ६ का अन्तर पड़ जाता है। प्रस्तुत संस्करणमें 'साकेदपुरे सीमंधरस्य' आदि गाथा अधिक है। इसके कारण छहके स्थानमें पाँचका अन्तर रह जाता हैं। पुनः शोला० प्रतिमें 'सव्वम्मि लोगखित्ते' इत्यादि गाथाको, जो विजयोदयामें स्पष्ट रूपसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 1020