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( १३ ) और दूसरे साधु ब्रह्मचारी। दूसरे सम्प्रदायोंमें अधिकतर आचार्य तथा साधु दोनों ब्रह्मचारी होते हैं। ____ इन सम्प्रदायोंमें मठाधीशोंका ठाट-बाट बड़े-बड़े रईसोंकी तरह होता है। वे बड़ी-बड़ी जागीरों तथा दूसरी सम्पत्तियोंके मालिक होते हैं। भक्त लोग बड़ी-बड़ी भेट चढ़ाते हैं इसलिए उन्हें कमाने को चिन्ता नहीं रहती। उनके ऐश्वर्यको देखकर मठाधीश बननेकी लालसा से चेले भी बहुत मिल जाते हैं। उनमें और गृहस्थोंमें इतना ही फरक रहता है कि वे सिर मुंडाए रहते हैं, भगवें कपड़े पहनते है और प्रायः विवाह भी नहीं करते। बाकी सभी काम-काज उनके एक जागीरदारके समान चलते हैं । इनमें कुछ साधु ऐसे भी मिलते हैं, जो संसारसे वास्तवमें विरक्त होते हैं। वे अपना जीवन ज्ञान-साधना, दुखियोंकी सेवा अथवा तपस्यामें लगा देते हैं। "ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या' इसी भावनामें वे दिन रात लगे रहते हैं। किन्तु ऐसे साधु बहुत थोड़े होते हैं।
अधिकतर हिन्दू-साधुओंमें कपड़ोंके सिवाय और कोई साधुत्व का गुण नहीं होता। साधु, संन्यासी इत्यादि नाम धारण करके बहुतसे लोग मन्दिर, तीर्थस्थान तथा मेलोंमें इधर उधर पड़े हुए या टोलेके टोले भटकते नज़र आते हैं। वे सब हिन्दू-धर्मशास्त्रानुसार दीक्षा लिए हुए साधु नहीं होते। भावुक हिन्दू विशेषतया स्त्रियां उन्हें महाराज, बाबाजी आदि नामोंसे सम्बोधित करते हैं। इस प्रकार हिन्दू समाजकी श्रद्धा और अज्ञानताके कारणसे लाखों ढोंगी पोषे
जाते हैं। ऐसा कोई दुर्व्यसन नहीं है, जो उनमें नहीं पाया जाता। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com