Book Title: Baldiksha Vivechan
Author(s): Indrachandra Shastri
Publisher: Champalal Banthiya

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Page 29
________________ ( २३ ) बालदीक्षा निषेयके लिये शास्त्रीय प्रमाण हरिभद्रसूरिने पंचाशक गा० ४६ तथा ५० में कहा है कि यह दुषमाकाल अशुभ परिणाम वाला है। इस कारणसे इस कालमें चारित्रका पालन होना कठिन है । दीक्षा लेनेवालोंको पहले पडिमाओंका अभ्यास करके बादमें दीक्षा लेनी चाहिए। धर्माविन्दु म०४ सू० २४ में दीक्षार्थीसे प्रश्न करने, उसका आचार देखने तथा दूसरी प्रकारसे उसकी परिक्षा करनेका विधान है। उस समय जैसी परीक्षाके लिये कहा गया है, उसमें योग्य उमर का व्यक्ति ही पास हो सकता है। बालक तो उन प्रश्नोंको समझ भी नहीं सकता। श्री वर्धमानसूरिने 'आचार दिनकर' में कहा है-सम्यक्त्व तथा बारह ब्रतोंको निर्दोष पालनेवाला, भोगोंकी इच्छासे शान्त, वैराग्यकी भावना वाला, जिसके गार्हस्थ्य सम्बन्धी मनोरथ पूरे हो गए हैं, पुत्र, पन्नो, अथवा स्वामी आदिकी सहर्ष अनुमति प्राप्त करनेवाला व्यक्ति ब्रह्मचर्य व्रतके योग्य होता है। ब्रह्मचर्य व्रत लेनेके बाद ब्रह्मचारीको कैसे रहना चाहिये, इस विषयमें लिखा है-चोटी लंगोट आदि धारण करके तीन वर्ष तक मौन रहकर शुभ ध्यान तथा पवित्र विचारोंमें लीन रहना चाहिए। तीन वर्ष तक मन, बचन और शरीरसे शुद्ध ब्रह्मचर्य पालनेके बाद दीक्षा अंगोकार करनी चाहिए। यदि उस समय ब्रह्मचर्यका खण्डन हो जाय, तो फिर गृहस्थावास स्वीकार कर लेना चाहिए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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