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(घ) बाल दीक्षाका जहाँ निषेध आया है, वहाँ उसका अर्थ आठ वर्ष तक बालकसे है।
विरोधी दलीलोंका खण्डन (क) यह बात ठीक है कि जैन शास्त्रोंमें दीक्षाके लिये कमसे कम उम्र आठ वर्ष बताई गई है किन्तु केवल उतनी उम्र होनेसे कोई दीक्षाका अधिकारी नहीं बन जाता। दीक्षार्थी में दूसरे गुणोंका होना भी आवश्यक है। सौ में से एक भी बालक ऐसा मिलना कठिन है जो दीक्षार्थीके योग्य गुणों वाला हो तथा जिसमें साधुके कठोर व्रत को पालन करने का सामर्थ्य हो। ऐसी दशामें अयोग्य व्यक्तिको दीक्षा देनेसे शास्त्र विरोध होता है।
(ख ) अतिमुक्त कुमार तथा वज्रस्वामी जन्मसे ही विशिष्ट शक्ति सम्पन्न थे। उन्हें दीक्षा देनेवाले भी अतिशय ज्ञान सम्पन्न थे। उनकी तुलना साधारण बालकोंसे नहीं की जा सकती। अतिमुक्त कुपार उसो भवमें मोक्ष गये। वज्रस्वामी बाल्यावस्थामें ही चौदह पूक्के ज्ञाता हो गये । क्या आजकल दीक्षित किये जानेवाले बालकोंमें एक भी ऐमा हुआ है ? उनके उदाहरणसे तो यही स्पष्ट होता है कि साधारण बालकको दीक्षा न देनी चाहिये।
दूसरी बात यह है कि मगवान् महावीरको हुए लगभग अढ़ाई हजार वर्ष हो गए। इतने लम्बे समयमें केवल दो चार विशिष्ट शक्ति सम्पन्न बालकोंको ही दीक्षा दी गई। इस बातको उदाहरण बना कर प्रतिवर्ष बीमों बालक तथा बालिकाओं को दीक्षा देना उचित नहीं कहा जा सकता।
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