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BHARATIYA VIDYA BHAVAN.
33-35. HARVEY ROAD.
BOMBAY 7. इस देशके प्रत्येक सम्प्रदाय में बालदीक्षा की प्रथा चिरकाल से चली आ रही है पर साथ ही उसमें अनेक दोष तथा खराबियाँ बढ़ती गई हैं जो कि इतिहास द्वारा सिद्ध हैं। ये खराबियाँ अब इतनी अधिक बढ़ गई हैं कि इस शिक्षा और स्वतन्त्रता प्रधान युग में उनकी उपेक्षा करना मानों धर्म नाश का आह्वान करना है। किसी युगमें बालदीक्षा को धार्मिक रूप चाहे कितना ही क्यों न दिया गया हो पर पुराने अनुभवोंने यह प्रमाणित कर दिया है कि धर्मके नियमों का बिना परिवर्तन किये धर्म खुद भी नष्ट होता है। इसलिये धर्म रक्षा के निमित्त ही बालदीक्षा के धार्मिक स्वरूप में परिवर्तन होना आव. श्यक है। नाबालिग लड़के लड़कियों को दीक्षित करने से जो खराबियां पैदा होती हैं वे संक्षेप में ये हैं :
(१) दीक्षित बालक या बालिका बड़ी अवस्था होने पर जब अपने मन पर नियन्त्रण नहीं रख सकता तब वह छिप कर अनाचार गामी होता है जिससे वह केवल अपना ही नहीं बल्कि अनेकों का जीवन बर्बाद करता है। फलतः उसे पहले उसका गुरु और उसका सम्प्रदाय ही तिरस्कृत करता है और फिर बह यदि समाज में रहने की कामना करे तो भी प्रतिष्ठापूर्वक रह नहीं सकता। इस तरह वह समाज और धर्म सम्प्रदाय दोनों से भ्रष्ट होता है। यह हुई व्यक्तिगत हानि।
(२) बालदीक्षा के दोषों के कारण अनेक गृहस्थ स्त्री पुरुषों का जीवन भी मलिन होता है और समाज में एक तरह से छोटा मोटा अनाचार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com