Book Title: Baldiksha Vivechan
Author(s): Indrachandra Shastri
Publisher: Champalal Banthiya

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Page 75
________________ CHIMANLAL C. SHAH J. P. M.A., LL.B. Solicitor. Tele : No. 23938 35, Dalal Street, FORT, BOMBAY. १५ मी फेब्रुअरी, १९४४ शेठ चंपालाल जी बांठिया बीकानेर राज्य नी धारा सभा मां बालदीक्षा प्रतिबन्धक खग्ड़ो रजु को छे ते हुं बांची गयो छु, ते साथे हुं संपूर्ण सहमत छु. आवा धारा नी आवश्यकता विषे बे मत होई सके नहीं, स्थिति चुस्त लोको अज्ञान के स्वार्थे थी तेनो विरोध करशे पण प्रजा नो बहु मोटो भाग तेने सहर्षे आवकारशे ते विषे शंका नथी। आवो खरड़ो लाववो पड़े ते अशोभनीय छे, ते आपणा समाज नी अवनति सूचवे छे, खरी रीते प्रजा मत एटलो जाग्रत होवो जोइये के बालदीक्षा अशक्य थाय, पण धर्मने नामे बहेमो ए आपणा मां घर कयु छे अने मावा अनिष्टो आंखे जोता छतां तेने अटकाववानी हीमत नथी, तेवा संजोगो मां आवो कायदो अनिवार्य छे, कोई पण प्रगतिशील राज्य तेने मावकारता प्रत्याघाती मानस वाला कोई बर्ग ना विरोधनी परवा नहिं करे। ___बालदीक्षा धर्म समाज-हिते के मानस शास्त्र नी दृष्टि ए अनिष्ट छे, मानस शास्त्र नी दृष्टि बराबर लक्ष मां राखी हिन्दू धर्म संन्यासाश्रम ने अंतिम आश्रम स्वीकार्यो छे, सांसारिक अनुभवों थई गया पछी इन्द्रिय सुखो उपभोग नी लालसा जे नी क्षीण थई छे, समाज प्रत्ये नी पोता-नी फरजो अदा करी ईश्वर न सान्निध्य जे ने अनुभववं छे, जेने साचो अन्तर वैराग्य जाग्रत थयो छे एवाओ संन्यास लई सके, बाल्यवय मां दीक्षा लेनार बालक बालिका ने मा अनुभवो होता नथी एवणे अणसमजण मां हा पाड़े छे, पण ज्यारे यौवन आक्रमण करे छे, विषय सुखोपभोग नी तीव्र आकांक्षा जागे छे, ज्ञान के वैराग्य - बल नथी होत्यारे तेनु पतन थाय छे, एटलुंज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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