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उत्तर-यह बात ठीक है कि बालकके हितोंकी रक्षाका उत्तरदायित्व सबसे अधिक माता-पिता पर है और वे ही इस विषयमें सबसे अधिक विश्वास योग्य हो सकते हैं । किन्तु जहाँ माता पिता अज्ञानता या वैयक्तिक स्वार्थके कारण बालकका हित बिगाड़नेके लिए तयार हो जाते हैं वहां सरकार के लिए दखल देना आवश्यक हो जाता है । बाल विवाह विरोधी कानूनका बनाया जाना इस बातको स्पष्ट कर देता है। जब यह समझा गया कि छोटे-छोटे बच्चोंका विवाह करके माता पिता बालकोंका भविष्य बिगाड़ देते हैं, तो उन अज्ञान माता पिताओं के उत्तरदायित्वको ठुकराकर कानून बनाना पड़ा। उन्नत राष्ट्रोंमें आवश्यक शिक्षा (Compulsory Education ) तथा दूसरे ऐसे बहुतसे कानून हैं जिनमें बालकों का भविष्य सरकारने अपने हाथमें ले रखा है। रुपया लेकर अपनी कन्याका विवाह वृद्धके साथ करने वाले माता पिताओंकी कमी नहीं है। क्या यह कहा जा सकता है कि ऐसे माता पिताके हाथमें बालकका भविष्य पूर्णतया सौंप देना चाहिए ?
बहुतसे संरक्षक कन्याके विवाहमें होनेवाले खर्चके डरसे उसे दीक्षा दिला देते हैं। बड़ा भाई संपत्तिमें बँटवारेके डरसे अपने छोटे भाईको दीक्षा दिलवा देता है। रुपये देकर चेला खरीदनेके प्रसंग भी बहुत देखनेमें आते हैं। इन सब बातोंके होते हुए संरक्षककी जिम्मेवारी पर विश्वास करना किसी भी दृष्टिसे उचित नहीं कहा जा सकता।
(३) कानून में नाबालिगको धर्मपरिवर्तन तथा धार्मिक कार्यों
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