________________
( ५२ )
कानून इस बात को नहीं कहता कि बालकमें धार्मिक संस्कार ही न डाले जायें किन्तु यह कहता कि जीवन बन्धनमें न डाला जाय । संस्कार तथा बुद्धि परिपक्क होनेपर वह अपनी इच्छासे संन्यास ग्रहण कर सकता है।
(६) माता पिता या उनके अभावमें नाबालिगका घनिष्ठ आत्मीयही उसका स्वाभाविक आभिभावक (Natural guardian) हैं, यह बात कानून व प्रचलित रिवाज मंजूर करता है। पिता माता नबालिगकी भावो उन्नतिके लिये उसे चेला चेली बनाने लिए दे सकते हैं। राजशक्ति सिर्फ नबालिगकी संपतिकी सर्वोच्च अभिभावक है। याने जहाँ स्वाभाविक अभिभावक नाबालिगकी संपत्ति का रक्षण नहीं करते वहाँ राज शक्ति याने अदालतें नबालिगका अभिभावक बनती हैं । परन्तु नाबालिगके शरीरके अभिभावक माता पिता ही सर्वदा हैं। और उनको ही माज्ञासे और नाबलिगकी तीब्र इच्छासे यदि चेला चेली बनाया जाय तो उसमें राजशक्तिको आपत्ति का कोई कारण नहीं हो सकता।
उत्तर-यह बात ठीक है कि माता पिता बालकके सर्वोच्च अभि भावक होते हैं किन्तु कानूनमें यह बात स्पष्ट है कि यदि माता पिता बालकके भरण पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षाका ध्यान न रखें तो वे भी संरक्षकत्वसे पृथक् किए जा सकते हैं, या कोर्ट उन्हें दण्ड दे सकता है।
बाल्यावस्थामें दीक्षित हो जानेपर बालकके निम लिखित हितों की हानि होती हैShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com