Book Title: Baldiksha Vivechan
Author(s): Indrachandra Shastri
Publisher: Champalal Banthiya

View full book text
Previous | Next

Page 57
________________ ( ५१ ) भी बाल्यकालमें दीक्षा नहीं ली। भगवान महावीरने २८ वषमें दीक्षा ली थी। भगवान् बुद्धने पुत्रोत्पत्ति के बाद दीक्षा ली । ग्यारह गणधरोंमेंसे एक भी ऐसा नहीं था जिसने बाल्यवस्थामें दीक्षा ली हो । जैनियोंमें त्रेमठ शलाका पुरुष माने जाते हैं । उनमें से एक भी बाल्यावस्थामें दीक्षित नहीं हुआ। सोलह सतियोंमें एक भी बालिका न थी। स्वयंभव, भद्रवाहु, स्थूलभद्र, सिद्धसेन दिवाकर, हरिभद्रसुरि आदि जितने प्रसिद्ध आचार्य तथा विद्वान् हुए हैं सभीने बड़ी उम्रमें दीक्षा ली थी। हेमचन्द्र या शंकराचार्य सरीखा एक आधा उदाहरण बाल्यावस्थामें साधु बननेका मिलता है किन्तु वह अपवाद के रूपमें गिना जाता है। संसारके धर्माचार्योको लिया जाय तो बाल्यावस्था में दीक्षित होने वाले एक प्रतिशत भी न मिलेंगे। जिसने सांसारिक भोगोंको देखा ही नहीं है, वह उनसे विरक्त नहीं हो सकता। सच्चा विरक्त तो वही होता है जो संसार में फंसकर भोगोंसे तंग आ गया है । ऐसा व्यक्ति ही सच्चा साधु हो सकता है। जिसने भोगोंको जाना ही नहीं उसके लिये भोग प्राप्त होने पर पतनकी पूर्ण संभावना रहती है । धर्मको सबसे अधिक आशा उनसे होती है जो इस जीवनके पापों एवं कुकर्मोंसे दग्ध होकर बाहर निकलना चाहते हैं। यह बात ठीक है कि व्यावहारिक संस्कारोंकी तरह धार्मिक संस्कार भी बाल्यावस्थामें ही डाले जाने चाहिए। किन्तु दीक्षा ग्रहण करते समय संस्कारोंका प्रारम्भ नहीं होता। दीक्षाका अधिकारी तो वह होता है जिसके संस्कार दृढ़ हो चुके हैं। बाल दीक्षा प्रतिबन्धक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76