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के आधार पर बाल दीक्षा प्रतिबन्धक कानून' का विरोध किया है वे युक्तियाँ और उनके उत्तर नीचे दिये जाते हैं
१-सन् १९२६ में सेठ रामरतनदासजी बागड़ीने बीकानेर गवर्नमेन्टसे यह प्रार्थना की थी कि रियासतमें नाबालिग लड़के लड़कियोंको चेला चेली बनानेकी प्रथा दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जिससे बड़ी भारी हानि होती है। इसके लिये गवर्नमेन्ट की तरफ से उचित कार्रवाई की जानी चाहिये। इसपर श्री चोपड़ाजीने सन् १९२१ की मर्दुमशुमारीके आंकड़े पेश करके लिखा है कि पौने तीन लाखकी नाबालिग प्रजामें केवल ३५ व्यक्तियों ने दीक्षा ली है। इसलिये यह कहना गलत है कि नाबालिगोंको चेलाचेली बनानेकी प्रथा बढ़ रही है।
उत्तर-इसके उत्तरमें हम बीकानेर स्टेटकी कुल जैन जनताकी संख्याके अनुपातमें ७४ प्रतिशत कहे जाने वाले 'श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ' नामक सम्प्रदाय (सौभाग्यसे श्री० चोपड़ाजी भी उसी सम्प्रदाय भुक्त हैं ) के आंकड़े उदाहरण स्वरूप पेश करते हैं। मि० भादवा सुदी १३ सं० २००० को तेरह व्यक्तियोंने दीक्षा ली. उनमें से एक या दो को छोड़कर सभी नाबालिग थे। इसी प्रकार मि० कार्तिक सुदो ह सं० २००० को पन्द्रह व्यक्तियोंने दीक्षा लो उनमें से १ वालिग और १४ नाबालिग थे। यदि पिछले ७ वर्षों (सं०
* ' देखो, श्री जैन श्वे. तेरापंथी समा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित मासिक 'विवरण पत्रिका' सितम्बर और अक्टूबर सन् १९४३ के अंक । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com