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( ४५ ) सुश्रुतमें आया है
वयस्तु त्रिविधं बाल्यं, मध्यमं वाईकं तथा ।
ऊनषोडशवर्षस्तु नरो बालो निगद्यते ।। स्मृति तथा भरत नाट्य शास्त्रमें आया है
आषोडशाद्भवेद्वालस्तरुणस्तत उच्यते । . अमर कोषकी 'अमर विवेक' टीकामें भी यही बात है
आषोडशाद्वालः ।। इसलिये आठ वर्ष तक हो बाल कहना उचित नहीं है। मनुस्मृति अ०२ श्लोक १५३ में आया है
___ अज्ञो भवति वै बालः। इसका अर्थ यह है कि मनुष्य जब तक अज्ञ रहता है, अपने हिताहितको नहीं समझ सकता तब तक वह बाल है। यह सरकारी निर्णय हो चुका है कि बुद्धिका परिपाक १८ वर्ष पूर्व तक नहीं होता। इस दृष्टिसे देखा जाय तो अठारह वर्ष तक की अवस्थावालेको बाल ही समझना चाहिये ।
श्री० छोगमलनी चोपड़ाकी युक्तियों पर विचार
सन् १९३० ई० में श्री जैनश्वेताम्बर तेरापंथी सभाके तत्कालीन मंत्री श्री० छोगमलजी चोपड़ाकी तरफसे 'बोकानेरमें नाबालिग चेलाचेली निषेधक :प्रस्ताव पर विवेचन' नामकी दो पुस्तिकाएँ (खण्ड १ और २) प्रकाशित हुई थीं। उनमें उन्होंने जिन युक्तियों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com