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( ४७ ) १६६३ से 8 तक) के आंकड़े देखे जायँ तो पता चलेगा कि आचार्य श्री तुलसीरामजोके तबतकके शासनकालमें दीक्षा लेनेवाले ६४ संत मुनिराजों' में से ४८ कुँवारे ( नाबालिग ) थे जोकि प्रतिशत ७५ होते हैं ! किन्तु इनसे पिछले ८ आचार्यों के शासनकाल में-दोक्षा लेकर 'गण बाहर' हो जानेवालेको बाद देकर बाकी रहे हुओंमेंसे भी-क्रपशः ६६, ४६, ५६, ६०, ४८, ३०, २२ और २७ प्रतिशत थे+। अब पाठक ही देखें कि यह प्रथा बढ़ रही है या नहीं ?
२-जब मा बाप या संग्क्षक पर ही नाबालिग्रके सांसारिक कामोंका भार रहता है और कानूनन वे नाबालिग के शरीर व संपत्ति के रक्षक हैं, तो यह समझमें नहीं आता कि धार्मिक हितचिन्तनका भार उनपर से कैसे हटाया जा सकता है ?
+ मारवाड़ और थलीमें आम रिवाज है कि प्रायः १५-१६ वष आयु के पूर्व ही विवाह हो जाता है इसलिये कुँवारोंको नाबालिग ही समझना चाहिये। हाँ, विवाहित भी नाबालिग हो सकता है अतः लिखित संख्यामें वृद्धिके अतिरिक्त कमीकी संभावना नहीं।
+ देखो, 'श्री जैन श्वे. तेरापंथीं सम्प्रदायके वर्तमान संत मुनिराज एवं महासतियाँजी महाराजकी नामावली' नामक पुस्तिका। उक्त सभा द्वारा प्रकाशित ।
नोट-दूसरो सम्प्रदायोंमें भो बाल दीक्षा प्रचलित है किन्तु व्यवस्थित आंकड़े न मिलनसे नहीं दिये जा सके। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com