Book Title: Baldiksha Vivechan
Author(s): Indrachandra Shastri
Publisher: Champalal Banthiya

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Page 47
________________ ( ४१ ) मर्यादाका पालन वहीं तक किया जाता है जहाँतक अपने स्वार्थोंमें कोई खलल नहीं पड़ता। ऐसी दशामें शास्त्रीय नियम रहनेपर भी यह नहीं कहा जा सकता कि उनका पालन अवश्य होता है । पालन न होनेपर नियमोंका होना कोई महत्व नहीं रखता। (घ) साधु संस्थाको धक्का-कानूनका उद्देश्य यह नहीं है कि इमसे साधुसंस्थाको धक्का पहुंचे। इसके विपरीत कानून बनने पर साधुसंस्थामें सुधार होगा। साधु-संस्थाकी उन्नति साधुओंकी बड़ी संख्या पर निर्भर नहीं है किन्तु उनके पवित्र आचरण तथा त्याग पर निर्भर करती है। आज साधु वेषधारियोंकी संख्या सत्तर लाखसे अधिक होने पर भी साधु संस्था गिरी हुई है। किन्तु पवित्र आचरण वाले इने गिने साधु होने पर भी साधु संस्थाको उन्नत कहा जायगा। (ङ) आत्मविकासका रुकना-ऐसा एक भी धर्म नहीं है जिसमें यह कहा गया हो कि साधुके कपड़े बिना पहने आत्मविकास नहीं हो सकता। जैन शास्त्रोंमें स्पष्ट लिखा गया है कि गृहस्थके वेषमें रहते हुए भी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। जिस व्यक्तिमें उत्कट वैराग्य है वह गृहस्थ रहता हुआ भी धर्मकी उत्कृष्ट आराधना कर सकता है। कानून तो केवल यही कहता है कि बालकको साधुके कपड़े पहिनाकर उसे जीवन भरके लिये प्रतिज्ञाबद्ध न किया जाय । यदि वह गृहस्थ रहकर विवाह न करे, साधुके समान दिनचर्या बना ले तो उसे कोई नहीं रोकता । बाल्यावस्थामें ही जीवन भरके लिये प्रतिज्ञा करनेकी क्षमता उसमें नहीं होती। यदि एक वालक वैराग्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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